नई दिल्ली। अमेरिका ने ईरान से तेल आयात के मसले पर भारत के प्रति अपने रवैये में कुछ नरमी के संकेत दिए हैं। बीते दिनों कूटनीतिक संदेशों के ज़रिए भारत ने अमेरिका से कहा था कि वह ईरान से तेल आयात में क़रीब एक तिहाई कटौती करेगा। इसके बाद ही अमेरिका ने पांच नवंबर से अपने प्रस्तावित प्रतिबंधों में कुछ शिथिलता बरती है।
देखने में अमेरिका का यह रवैया कोई बहुत सकारात्मक नहीं है। धौंसपट्टी या दादागीरी के ज़रिए किसी भी देश को शिकार बनाना अमेरिका की पुरानी आदत रही है। अभी तक भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और उसका आधार आर्थिक न होने के कारण अभी तक भारत पर उसका बहुत असर नही होता था।
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सत्तर साल से अमेरिकी रिश्तों का सार यही है कि अपने हितों के आगे उसने कभी भी हिन्दुस्तान की चिंता नहीं की। बल्कि खुल्लम खुल्ला वह भारत के ख़िलाफ़ रहा है। बांग्लादेश युद्ध में तो उसने बाक़ायदा पाकिस्तान का साथ देते हुए भारत के ख़िलाफ़ अपना जहाज़ी बड़ा भेज ही दिया था।
अगर सोवियत रूस ने मदद न की होती तो भारत के सामने मुश्किल खड़ी हो जाती। पिछले पच्चीस बरसों में अलबत्ता संबंधों में आंशिक बदलाव आया है। नरसिंह राव सरकार की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के चलते अमेरिका को कोई कम फायदा नहीं हुआ है।
भारत अमेरिकी कंपनियों का पसंदीदा बाज़ार बन गया
भारत अमेरिकी कंपनियों का पसंदीदा बाज़ार बन गया। इसके बाद, दस-ग्यारह बरस पहले अंतर्राष्ट्रीय मंदी के दौर में अमेरिकी अर्थ व्यवस्था धड़ाम से गिरी थी, तो यह भारत का बाज़ार ही था, जिसने इस महादेश को प्राणवायु दी। लेकिन अपने प्रति उपकारों को याद रखना अमेरिका की फ़ितरत में नहीं है। आज भी भारतीय अमेरिका की रीढ़ से बाहर हो जाएं तो इस विराट महाशक्ति की हालत क्या होगी -आप कल्पना नहीं कर सकते।
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कुछ बरस पहले तक तो अमेरिका भारत और पाकिस्तान – दोनों को साधने की नीति पर चल रहा था। लेकिन जब पाकिस्तान चीन की शरण में चला गया तो अमेरिका के लिए भारत ही एशिया में उसका शुभचिंतक हो सकता था। इसके अलावा पाकिस्तान का बाज़ार अमेरिका का कोई भला नहीं कर सकता था। भारत के साथ रहने के फ़ायदे अमेरिका को पता हैं। खुद राष्ट्रपति ट्रंप के अपने कारोबार की जड़ें भारत में फ़ैली हुई हैं।
भारत दे सकता है बड़ा झटका
एक बार उन पर हिन्दुस्तान की कोप दृष्टि पड़ी तो ट्रंप के लिए यह बड़ा झटका होगा। वैसे एक बार ईरान पर प्रतिबंध लगाने के बाद भारत ने अमेरिका का साथ तो दिया था, लेकिन ईरान से तेल आयात पूरी तरह नहीं रोका था । लेकिन इस बार अमेरिकी प्रतिबंध तो विशुद्ध डोनाल्ड ट्रंप की सनक है। खुद अमेरिकी सहयोगी इस मसले पर उसके साथ नहीं हैं।
ऐसे में भारत को अपने हितों को भी देखना ही होगा। चीन के बाद भारत ईरान का दूसरा बड़ा तेल आयातक देश है। ईरान से हिन्दुस्तान की दस फ़ीसदी तेल की ज़रूरत पूरी होती है। इस साल मई में ट्रंप के प्रतिबन्ध एलान के बावजूद इंडियन ऑइल और मंगलौर रिफायनरी ने ईरान से समझौता किया है।
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