देहरादून। उत्तराखंड में महिला सुरक्षा के सरकारी दावे की हकीकत की बानगी देखने और हालात को समझने के लिए महिला हेल्पलाइन 1090 के आंकड़े ही पर्याप्त हैं। यहां महिलाएं दहलीज के भीतर हिंसा का शिकार तो हो ही रही हैं, घर के बाहर भी उनका किसी न किसी तरह से शोषण किया जा रहा है।
आंकड़े बताते हैं कि राज्य में हर रोज 17 महिलाएं महिला हेल्पलाइन की मदद ले रही हैं। हालांकि यह आंकड़ा महिलाओं की जागरूकता की ओर भी इशारा करता है। पौड़ी में किशोरी को जिंदा जलाने की घटना ने महिला सुरक्षा को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। हालांकि यह कोई पहला मामला नहीं, जब आधी आबादी शोषण या फिर हिंसा की शिकार हुई हैं।
पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसने उस पूरे सिस्टम को कठघरे में खड़ा कर दिया,जिसके कंधों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी हैं। इसमें सबसे अहम महिला हेल्पलाइन 1090 पर आने वाली फोन कॉल हैं, जिनकी संख्या बढ़ती ही जा रही है।
फोन कॉल की संख्या बढ़ने का सीधा मतलब महिलाओं के शोषण से जुड़ा है। आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच कुल 5171 फोन कॉल 1090 हेल्पलाइन पर आए। यानी हर रोज औसतन 17 महिलाओं को पुलिस की मदद की जरूरत पड़ी। वहीं पिछले साल 5681, 2016 में 5764, 2015 में 5580, 2014 में 6941 और साल 2013 में 6623 फोन कॉल आए थे।
इसमें सबसे अधिक चिंताजनक हालात मैदानी जिलों देहरादून, नैनीताल, ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार के हैं। पर्वतीय जिलों में कमोबेश स्थिति कुछ बेहतर है। आंकड़ों के आईने में देखें तो इस साल यहां भी महिलाओं पर अपराध की संख्या बढ़ी है।
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