पब्लिक रैली औऱ जनसभाओं की बजाए केपी और रिंकू को मनाने में व्यस्त हैं चौधरी, फिर भी ‘दाल नहीं गली’
डेली संवाद, जालंधर
दोआबा की सबसे अहम सीट मानी जाती जालंधर लोकसभा कांग्रेस के हाथ से फिसलती नजर आ रही है। क्योंकि यहां मौजूदा सांसद संतोख चौधरी का चारों तरफ से विरोध हो रहा है। ये विरोध खुद कांग्रेस के विधायक, नेता, कार्यकर्ता और पूर्व कैबिनेट मंत्री कर रहे हैं। जिससे चौधरी अब इसे मैनेज करने में जुट गए हैं। लेकिन जानकार बताते हैं कि चौधरी ने देर कर दी है।
दोआबा की दलित राजनीति कभी चौधरी खानदान के इर्द-गिर्द घूमती थी। लेकिन दोआबा औऱ पंजाब के सबसे कद्दावर दलित नेता चौधरी जगजीत सिंह के निधन के बाद चौधरी खानदान से राजनीति बाहर होने लगी। नतीजन संतोख चौधरी सांसद बन तो गए, लेकिन उनकी छवि कद्दावर दलित नेता के रूप में नहीं बन सकी। इसका सबसे बड़ा कारण संतोख चौधरी के बेटे बिक्रम चौधरी को लेकर रहा है। माना जा रहा है कि बिक्रम चौधरी कभी भी जमीनी स्तर के कार्यकर्ता से जुड़ाव नहीं कर सके।
इसी डैमेज कंट्रोल को लेकर चौधरी परेशान हैं
यही कारण रहा है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी हाईकमान ने चौधरी के बेटे बिक्रम को टिकट देने की बजाए चौधरी की पत्नी को टिकट दे दिया। जिसका बेटे बिक्रम ने ही विरोध कर दिया। पार्टी को मजबूर बिक्रम को टिकट देना पड़ा। नतीजा, कांग्रेस ये सीट गंवा बैठी। अब लोकसभा चुनाव में भी टिकट के दो बड़े दावेदार विधायक सुशील रिंकू और पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहिंदर केपी चौधरी से अलग-थलग होकर अपना खुद का कैंपेन चला रहे हैं।
इसी डैमेज कंट्रोल को लेकर चौधरी परेशान हैं। आलम यह है कि संतोख चौधरी पब्लिक रैली और जनसभाओं की बजाए इन्हीं दोनों नेताओं को मनाने में साऱी एनर्जी फूंक रहे हैं। संतोख चौधरी आज दोआबा के धाकड़ नेता राणा गुरजीत सिंह को लेकर रिंकू के घर पहुंच गए, लेकिन उनकी बात नहीं बनी।
दूसरी तरफ मोहिंदर केपी को मनाने के लिए विधायक राजकुमार वेरका उनके घर पहुंचे। लेकिन केपी अपनी टिकट को लेकर अड़े हैं। केपी ने कहा है कि पार्टी ने उनके साथ ठीक नहीं किया, पब्लिक चाहती है कि उन्हें टिकट मिले।
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