प्रदेश सरकार से तीन सप्ताह में जवाब भी मांगा है
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रदेश सरकार के एक और प्रयास को झटका लगा है। हाईकोर्ट ने सरकार के 24 जून 2019 के आदेश पर रोक लगा दी है। इससे पहले भी पांच जुलाई को इस मामले को याचिका के निर्णय की विषयवस्तु करार दिया था।
गोरखपुर के सामाजिक कार्यकर्ता गोरखप्रसाद की याचिका पर न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की पीठ ने कहा है कि जातियों को अनुसूचित या पिछड़ा घोषित करने का अधिकार संसद को है। कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से तीन सप्ताह में जवाब भी मांगा है।
प्रदेश सरकार ने 21/22 दिसंबर 2016 को अधिसूचना जारी कर पिछड़ी जाति मल्लाह को अनूसूचित जाति मझवार का प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दिया था। 24 जनवरी 2017 को एक और शासनादेश जारी कर कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, माझी और मडुआ को पिछड़ी जाति से अनुसूचित जाति में शामिल करने का निर्णय लिया।
डॉ. भीमराव आंबेडकर संगठन की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी
इसे लेकर डॉ. भीमराव आंबेडकर संगठन की ओर से जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका पर हाईकोर्ट ने कहा था कि इन जातियों को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करने का मामला याचिका पर अंतिम निर्णय की विषयवस्तु होगा।
याची के अधिवक्ता राकेश गुप्ता के मुताबिक इस आदेश की गलत व्याख्या करते हुए प्रदेश सरकार ने 24 जून 2019 को तीन अधिसूचनाएं जारी कर दीं। इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। राज्य सरकार के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। कोर्ट ने 24 जून के आदेशों पर रोक लगाते हुए कहा है कि राज्य सरकार को जातियों के मामले में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार संसद को है। कोर्ट ने सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है।
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