भाअ जी गुरशरन सिंह नाटक उत्सव शुरू
डेली संवाद, चंडीगढ़
पंजाब संगीत नाटक अकादमी द्वारा पंजाब कला भवन में भाअ जी गुरशरन सिंह के 90वें जन्म दिवस को समर्पित तीन दिवसीय नाटक उत्सव की शुरुआत आज राष्ट्रीय रंगमंच सैमीनार के साथ हुई। इस सैमीनार का उद्घाटन पंजाब कला परिषद के चेयरमैन सुरजीत पातर ने किया जबकि पदमश्री राम गोपाल बजाज मुख्य मेहमान के तौर पर शामिल हुए।
सैमीनार की अध्यक्षता पंजाब कला परिषद की वाइस चेयरपर्सन डा. नीलम मान सिंह ने की। सैमीनार की शुरुआत पदमश्री बाँसुरी कौल ने अपने मुख्य सुर भाषण के साथ की। श्री सुरजीत पातर ने अपने उद्घाटनी भाषण में कहा कि गुरशरन भाअ जी दुबे कुचले और विनम्र लोगों की आवाज़ बन कर पंजाब की सर ज़मीन पर उभरे। उन्होंने कहा कि रंगमंच हुनरों का हुनर है जिसमें सभी कलाएं समाईं हुई हैं। उन्होंने कहा कि गुरशरन सिंह अपने रंगमंच के द्वारा उन लोगों तक पहुँचे जहाँ आम तौर पर साहित्यकार नहीं पहुँच सकता।
नेशनल स्कूल ऑफ नाटक नयी दिल्ली के अध्यापक और प्रसिद्ध नाटककार श्री बंसी कौल ने सैमीनार की शुरुआत करते हुये कहा कि आज के दौर में हमारे नाटककारों और नौजवान नाटककारों को नये विषय ढूँढने पड़ेंगे। उन्होंने कहा कि गुरशरन सिंह की विचारधारा और नाटय शैली आज के दौर में पूरी तरह सार्थक है क्योंकि उनकी यह धारणा थी कि नाटक के द्वारा आम लोगों के साथ संवाद रचाना बहुत ज़रूरी है।
सोशल मीडिया के इस दौर में नाटककारों को और ज्यादा सोचने की ज़रूरत
श्री बंसी कौल ने कहा कि सोशल मीडिया के इस दौर में नाटककारों को और ज्यादा सोचने की ज़रूरत है और उनको ऐसे विषयों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो सीधे रूप में दिखाई नहीं देते। उन्होंने कहा कि देश के कोई ढाई करोड़ लोग थियेटर कर रहे हैं और 12 करोड़ से अधिक लोग पेशकार कलाओं के साथ जुड़े हुए हैं।
नाटककार डा. स्वराजबीर ने गुरशरन सिंह के साथ अपनी यादें सांझी करते कहा कि इपटा लहर के बाद गुरशरन सिंह पंजाब के धरातल पर एक जन लहर बन कर उभरे जिन्होंने जनता तक रंगमंच के माध्यम के द्वारा निर्धन लोगों की आवाज़ पहुंचाई और पूरी दिलेरी के साथ अधिकार और सत्य के लिए डटे। उन्होंने कहा कि गुरशरन सिंह ने बुरे हालात में भी रंगमंच को समकालीन समस्याओं के साथ जोड़ कर व्यंग्य के द्वारा अपनी बात की। उन्होंने इस बात पर चिंता ज़ाहिर की कि नाटककार फिल्में और टैलिविजऩ की तरफ जा रहे हैं जिससे उनका आम लोगों से सीधा संबंध टूट रहा है।
स्कूलों के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए
मुख्य मेहमान और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व डायरैक्टर पदमश्री राम गोपाल बजाज ने कहा कि रंगमंच को जीवित रखने के लिए स्कूलों के सिलेबस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए और ग्राम पंचायत से लेकर हर शहर में ऑडीटोरियम बनने चाहिएं। श्री बजाज ने कहा कि साहित्य और कला राजनैतिक एक्शन नहीं है बल्कि यह एक अपने आप में लहर है। उन्होंने कहा कि गुरशरन सिंह ने सिफऱ् थियेटर ही नहीं किया बल्कि थियेटर के दर्शक भी पैदा किये हैं।
गुरशरन सिंह की बड़ी बेटी डा. नवशरन ने कहा कि आज के दौर में नाटककारों को और भी और ज्यादा दिलेरी के साथ काम करना पड़ेगा क्योंकि अब अल्पसंख्यकों और जन समर्थकी ताकतों को सत्ता की तरफ से जुल्म का निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंनेे पंजाब के काले दौर की बात करते हुये कहा कि गुरशरन भाअ जी उस समय भी चुप नहीं बैठे जब दिन छिपने से पहले ही लोग दरवाज़े बंद करके घरों में बैठ जाते थे।
पल्स मंच के प्रधान अमोलक सिंह ने रंगमंच और लोगों की साझ की बात करते हुये कहा कि पंजाब में गुरशरन सिंह और प्रो. अजमेर सिंह औलख एक ऐसे नाटककार हुए हैं जिनको आज भी गाँवों के लोग सत्कार से याद करते हैं। उन्होंने कहा कि लोक रंगमंच का यह काफि़ला रुकना नहीं चाहिए।
रंगमंच की भूमिका की निशानदेही करना है
सैमीनार की शुरूआत में मेहमान का स्वागत करते हुये पंजाब संगीत नाटक अकादमी के प्रधान केवल धालीवाल ने कहा कि आज के इस सैमीनार का मकसद आज के दौर में रंगमंच की भूमिका की निशानदेही करना है क्योंकि गुरशरन भाअ जी के 90वें जन्म दिवस के मौके पर उनके इन शब्दों पर सोच विचार करना बहुत ज़रूरी है कि अगर रंगमंच ने सवाल ही नहीं खड़े करने है तो रंगमंच करना ही क्यों है।
उन्होंने कहा कि भाअ जी ने सारी उम्र अपना रंगमंच लोगों के लिए बिता दिया और वह ‘कला लोगों के लिए है’ की धारणा पर पहरा देते रहे। सैमीनार का संचालन पंजाब संगीत नाटक अकादमी के सचिव प्रीतम सिंह रुपाल ने किया। इस सैमीनार को पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के थियेटर और टीवी विभाग की प्रमुख डा. जसपाल कौर और अन्यों ने भी संबोधन किया।
‘बरतोलत बरैखत का नाटक बाला किंग खेला गया
इस तीन दिवसीय नाटक उत्सव के पहले दिन आज मंच रंगमंच अमृतसर द्वारा केवल धालीवाल के निर्देशन अधीन ‘बरतोलत बरैखत का नाटक बाला किंग खेला गया। यह नाटक बरैखत के जगत प्रसिद्ध नाटक रसिस्टीबल राइज ऑफ आरतुरूई का पंजाबी रुपांतर है जोकि एक बेरोजगार पहलवान की जि़ंदगी से सम्बन्धित है जो अपना धंधा बदामी मोहल्ला से छोडक़र व्यापारियों के इलाके गोलबाग़ में करने का फ़ैसला करता है।
वह व्यापार की दुनिया में जाकर अपने आप को बालाकिंग का नाम दे देते है और यहाँ व्यापारी की कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाता है। यह नाटक आज के हालात पर यथावत झलक छोड़ता है जोकि आज से 8 दशक पहले लिखा हुआ है । इसमें भष्टाचार हिंसा और अपराध जैसे विषयों को छूआ गया है।
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