- गुरदासपुर कोर्ट द्वारा ज़मानत की अपील रद्द
- कोर्ट ने लोक इंसाफ पार्टी के नेता के ग़ैर-जिम्मेदाराना और धमकाने वाले व्यवहार को देखते हुए सच सामने लाने के लिए उनकी हिरासत को बताया ज़रूरी
डेली संवाद, चंडीगढ़
गुरदासपुर सैशन कोर्ट द्वारा बुधवार को डी.सी. के साथ विवाद सम्बन्धी मामले में लोक इंसाफ पार्टी (एल.आई.पी.) के प्रमुख सिमरजीत सिंह बैंस के व्यवहार को ग़ैर- जि़म्मेदाराना, डराने -धमकाने वाला बताते हुए उनकी ज़मानत की अर्जी को रद्द कर दिया गया है।
विधायक की अग्रिम ज़मानत अर्जी को रद्द करते हुए जि़ला और सैशन जज रमेश कुमारी ने सच्चाई का पता लगाने के लिए दोषी को हिरासत में लेकर जांच को ज़रूरी समझा।
माननीय जज ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि जि़ला प्रशासक के प्रमुख से विवाद के दौरान आवेदक/दोषी द्वारा दिखाए तथ्य और हालातों और ग़ैर- जि़म्मेदाराना व्यवहार को देखते हुए वह गिरफ़्तारी से पहले की ज़मानत प्राप्त करने का हकदार नहीं है।
दोषी के खि़लाफ़ पहले ही दर्ज हुई 12 एफ.आई.आरज़ का हवाला देते हुए जज ने बैंस को एक आदतन अपराधी करार देते हुए कहा कि इसका अर्थ यह है कि आवेदक को सरकारी अधिकारियों को डराने, धमकाने और उनके काम में रुकावट डालने की आदत है और बार -बार मुकदमा दर्ज होने के बावजूद भी वह अपने व्यवहार को सुधारने में असफल रहा है।
जि़ला प्रशासन द्वारा दर्ज मामले के पीछे विधायक के राजनैतिक बदलाखोरी के दोष को रद्द करते हुए जज ने आगे कहा कि सार्वजनिक प्रतिनिधि और राज्य विधानसभा के चुने हुए मैंबर होने के साथ उनको सरकारी अधिकारियों /कर्मचारियों के साथ दुव्र्यवहार करने का कोई हक नहीं मिल जाता।
माननीय जज ने कहा कि आवेदक के खि़लाफ़ एफ.आई.आर इसलिए नहीं दर्ज की गई क्योंकि उसने वर्तमान मुख्यमंत्री पंजाब के खि़लाफ़ अर्जी दायर की थी और बल्कि जि़ला प्रशासन के प्रमुख के साथ आवेदक के विवाद सम्बन्धी वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड की गई जिसके मद्देनजऱ मामला दर्ज किया गया है।
नौकरशाह के साथ बुरा व्यवहार और बदतमीज़ी के साथ पेश आने के लिए विधायक की निंदा करते हुए अदालत ने फ़ैसला सुनाया कि ऐसी स्थिति में प्रशासन का प्रमुख स्वतंत्र, निडर और सुचारू ढंग से काम करने की स्थिति में नहीं होगा, खासकर जब जि़ला प्रशासन बड़े स्तर की त्रासदी से निपट रहा था जिसमें 24 मानवीय जानें चली गई।
अदालत ने कहा कि वह लोगों के नुमायंदों के तौर पर, पद और रुतबे वाला व्यक्ति है और उसको डिप्टी कमिश्नर के साथ सहृदय और शांतमयी ढंग से मिलना चाहिए था, न कि भीड़ के साथ। इसके अलावा, उसने अपने साथियों को जि़ला प्रशासन के प्रमुख के साथ उसके विवाद की वीडियो बनाने और इसको सोशल मीडिया पर अपलोड करने की आज्ञा देकर ग़ैर- जि़म्मेदाराना व्यवहार किया है।
जज ने अपने फ़ैसले के दौरान ऐसी स्थिति में संयम की महत्ता को दिखाते हुए कहा कि दोषी मौके की संवेदनशीलता को देखने में असफल रहा और इसकी बजाय उसने अस्पताल के भावनात्मक माहौल का फ़ायदा उठाने की कोशिश की, जहाँ पटाख़ा फैक्ट्री धमाके में ज़ख्मी हुए लोगों का इलाज और मृतकों की लाशों की पहचान करने की प्रक्रिया भी चल रही है।
अदालत ने कहा कि जिस व्यक्ति के पास जितनी ज़्यादा शक्ति और बड़ा पद है, उससे और ज्य़ादा जि़म्मेदारी और संयम की उम्मीद की जाती है।
यह है मामला
यह मामला 5 सितम्बर की एक घटना के साथ सम्बन्धित है, जब बैंस ने अपने समर्थकों समेत गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर विपुल उज्वल के साथ जुबानी झगड़े किया और बाद में डिप्टी कमिश्नर को उनके कार्यालय में डराया धमकाया था।
बैंस के खि़लाफ़ आई.पी.सी. की धारा 353, 186, 451, 177, 147, 505 और 506 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया गया था। आई.पी.सी. की धारा 353 और 505 अधीन सज़ा योग्य अपराध ग़ैर -ज़मानती हैं। उसने सी.आर.पी.सी. की धारा 438 के अंतर्गत गिरफ़्तारी से पहले ज़मानत के लिए अर्जी दायर की थी।