क्या है किसान बिल? पंजाब में क्यों मचा हंगामा? हरसिमरत बादल ने क्यों दिया इस्तीफा, नवजोत सिद्धू भी उतरे मैदान में

Daily Samvad
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नई दिल्ली। लोकसभा (Lok Sabha) में गुरुवार (17 सितम्बर) को दो किसान बिल पारित होने के बाद एनडीए गठबंधन (National Democratic Alliance) में फूट पड़ गई है। भाजपा की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) की नेता और केंद्र सरकार में मंत्री हरसिमरत कौर बादल (Harsimrat Kaur Badal) ने मोदी सरकार से इस्तीफा दे दिया।

हालांकि, उनकी पार्टी ने बीजेपी से समर्थन वापसी पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है। हरसिमरत का यह कदम किसान बिल के विरोध में उठाया गया है क्योंकि पंजाब और हरियाणा के किसान इस बिल का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। मोदी सरकार संसद के मौजूदा मानसून सत्र में तीन अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पास कराना चाहती है।

इनमें किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020, आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल-2020 और मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल, 2020 शामिल है। लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार ये अध्यादेश लेकर आई थी लेकिन अब उसे कानून की शक्ल देने के लिए संसद में बिल पेश किया गया है। इनमें दो लोकसभा में पारित हो चुके हैं। पंजाब, हरियाणा के अलावा तेलंगाना, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में भी किसान इसका विरोध कर रहे हैं।

क्या है ये बिल?

किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल-2020 राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर कोई कर लगाने से रोक लगाता है और किसानों को इस बात की आजादी देता है कि वो अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचे। सरकार का तर्क है कि इस बिल से किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।

आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल -2020 करीब 65 साल पुराने वस्तु अधिनियम कानून में संशोधन के लिए लाया गया है। इस बिल में अनाज, दलहन, आलू, प्याज समेत कुछ खाद्य वस्तुओं (तेल) आदि कोआवश्यक वस्तु की लिस्ट से बाहर करने का प्रावधान है। सरकार का तर्क है कि इससे प्राइवेट इन्वेस्टर्स को व्यापार करने में आसानी होगी और सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति मिलेगी। सरकार का ये भी दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिल सकेगा।

मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल -2020 में प्रावधान किया गया है कि किसान पहले से तय मूल्य पर कृषि उपज की सप्लाय के लिए लिखित समझौता कर सकते हैं। केंद्र सरकार इसके लिए एक आदर्श कृषि समझौते का दिशा-निर्देश भी जारी करेगी, ताकि किसानों को मदद मिल सके और आर्थिक लाभ कमाने में बिचौलिए की भूमिका खत्म हो सके।

फिर हंगामा है क्यों बरपा?

इन बिल (विधेयकों) पर किसानों की सबसे बड़ी चिंता न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) को लेकर है। किसानों को डर सता रहा है कि सरकार बिल की आड़ में उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य वापस लेना चाहती है। दूसरी तरफ कमीशन एजेंटों को डर सता रहा है कि नए कानून से उनकी कमीशन से होने वाली आय बंद हो जाएगी। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 12 लाख से ज्यादा किसान परिवार हैं और 28,000 से ज्यादा कमीशन एजेंट रजिस्टर्ड हैं।

केंद्र सरकार के तहत आने वाले भारतीय खाद्य निगम (FCI) पंजाब-हरियाणा में अधिकतम चावल और गेहूं की खरीदारी करता है। 2019-20 में रबी खरीद सीजन में पंजाब में 129.1 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी। जबकि कुल केंद्रीय खरीद 341.3 लाख मीट्रिक टन हुई थी। साफ है कि कृषि से पंजाब की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर जुड़ी है। किसानों को डर सता रहा है कि नए कानून से केंद्रीय खरीद एजेंसी यानी FCI उनका उपज नहीं खरीद सकेगी और उन्हें अपनी उपज बेचने में परेशानी होगी और एमएसपी से भी हाथ धोना पड़ेगा।

क्यों झुका अकाली दल?

इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा झटका शिरोमणि अकाली दल को लगा है। महीने भर पहले अकाली दल किसान अध्यादेश का समर्थन कर रहा था। पंजाब विधान सभा सत्र के ठीक एक दिन पहले (28 अगस्त, 2020) सुखबीर सिंह बादल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की चिट्ठी जारी करते हुए कहा था कि किसानों को मिलने वाली एमएसपी प्रभावित नहीं होगी। उन्होंने तब सीएम अमरिंदर सिंह पर किसानों को बहकाने का ठीकरा फोड़ा था लेकिन जब राज्य में किसानों का आंदोलन उग्र हुआ तो बादल को अपनी भूल का अहसास हुआ।

पंजाब में किसान ही अकाली दल के वोट बैंक हैं। कई मौकों पर बादल परिवार कह चुका है कि अकाली मतलब किसान, किसान मतलब अकाली। चूंकि राज्य में डेढ़ साल बाद विधान सभा चुनाव होने हैं और ऐसे में अकाली दल को वोट बैंक खिसकने का डर सताने लगा तब आनन-फानन में अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने का फैसला किया। हालांकि, पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ने या मोदी सरकार से समर्थन वापसी पर अभी कोई फैसला नहीं लिया है।

नवजोत सिद्धू ने किया ट्वीट

पंजाब की सियासत से दूर हो रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने भी इस मामले को लेकर ट्वीटर पर सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने टवीट क्या कि ‘सरकारें तमाम उम्र यही भूल करती रही, धूल उनके चेहरे पर थी, आईना साफ करती रही’।




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