ऑक्सीजन के लिए अस्पताल में रोता इंसान और प्रकृति की पीड़ा, पढ़ें हिमालय परिवार के महामंत्री कुलवीर सिंह का सटीक लेख

Daily Samvad
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kulvir singh

कुलवीर सिंह
कोरोना की जद मानव जीवन तक पहुंच गयी है, गवाह श्मशान के उठते धुंए, कब्रिस्तान पर उमड़ती भीड़ है। किसकी बारी कब यह कहना मुश्किल है। अस्पताल, बेड, ऑक्सीजन, इंजेक्शन, श्मशान सब कम पड़ते जा रहे हैं। हालात यह है कि मुर्दे जलाने के लिए लकड़ी भी कम पड़ रही है, अब हमें अस्पताल का महत्व समझ आ रहा है। आपत काल में मनुष्य कुछ नैतिक सोचने का दिखावा करता है। उत्तराखंड से लेकर अमेजन तक के वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है और अब ऑक्सीजन के लिए वह अस्पताल में रो रहा है।

चिपको (Chipko movement) जैसे आंदोलन को हम में से अधिकतर लोग मूर्खता समझते रहे हैं। जंगलों को काट कर शहर दर शहर कंक्रीट के जंगल खड़े किये गए, पर्याय है भौतिक विकास के साथ मानव का उच्च आधुनिक जीवन। मनुष्य की मूर्खता का आलम यह है कि कुछ की करनी अब सब की भरनी हो गयी है।

न खुली हवा, न खुला जीवन …

कभी आप मल्टी स्टोरी बिल्डिंग देखिये जो आधुनिकता के नाम पर कबूतर खाना है, न खुली हवा, न खुला जीवन …यह विकास कैसे हो सकता है? खुलेआम मनुष्य के जीवन को फायदे के लिए व्यापारी खरीद लेता है। यह मुनाफे का गणित है जो प्रचार की सीढ़ी चढ़कर आता है। आप सोच रहे होंगे कि कोरोना के साथ जंगल, पर्यावरण और मल्टीस्टोरी बिल्डिंग की क्या साम्यता? साम्यता है! प्रकृति की अनुकूलता और संतुलन से हो सकता है कि यह वायरस चीन के वुहान लैब से निर्मित हुआ हो किंतु वायरस खाद – पास हमारे वायुमंडल से ले रहा है।

मानव विकास के वादे के साथ शुरू हुआ भौतिक विकास वास्तव में विनाश है जो प्राकृतिक असुंतलन पैदा करके नये – नये वायरस की संभावनाएं पैदा कर रहा है। प्रकृति में संतुलन का नाम जीवन है और असुंतलन का नाम भयावह मृत्यु। प्रकृति में जीवन है, यह प्राचीन उक्ति है। प्रकृति से संघर्ष में नहीं सहयोग में संवहनीय विकास है जिसमें हमारी जरूरत के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए विकास भूगर्भित रहता है। हमारे पूर्वज मूर्ख नहीं थे जो प्रकृति, पेड़, नदी, समुद्र आदि को देवता मानते थे बल्कि वास्तव में उन्हें जीवन के विज्ञान का ज्ञान था।

तुम आधुनिक भौतिकतावादी सब को ताक पर रख कर “अहो अहं नमो मह्यं” आर्थत, ‘मैं चमत्कार हूं मुझे नमस्कार करो’ जैसी सोच निर्मित कर लिये जिसमें मानव ने मानव को व्यापारिक वस्तु बना दिया। अब तुम दूसरे के लिए लाभ की वस्तु हो, व्यक्ति नहीं। यही प्रछन्न मानवतावाद है। (लेखक, हिमालय परिवार पंजाब के महामंत्री हैं।)















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