डेली संवाद, चंडीगढ़/बैंगलुरु। Punjab News: पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को निजी तौर पर मिलकर पत्र सौंपते हुए राज्य के किसानों को कर्ज के जाल से निकालने, गेहूँ-धान के चक्र से बाहर निकाल कर फ़सलीय विभिन्नता और फलों एवं सब्जियों की कृषि को प्रोत्साहित करने की मांग की है।
इसके साथ ही पराली जलाने के रुझान को रोकने, कँटीली तार के पार किसानों की कठिनाई घटाने और कृषि में पानी की बचत और कीड़ों आदि के हमले से बचाने के लिए आधुनिक साधनों के प्रयोग के लिए बड़ा आर्थिक पैकेज माँगा है। इसके अलावा मध्य पूर्व तक कृषि और बाग़बानी उत्पादों का व्यापार खोलने की माँग की है, जिससे राज्य का किसान खुशहाल हो सके।
किसानों पर 75 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज
धालीवाल बैंगलुरु में सभी राज्यों के कृषि और बाग़बानी मंत्रियों की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दौरान शिरकत करने पहुँचे हुए हैं, जहाँ उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री के साथ मुलाकात कर राज्य के किसानों के लिए आर्थिक राहत की माँग की है। धालीवाल ने अपने पत्र में लिखा है कि छोटा किसान इस समय में कर्ज के जाल में फंसा हुआ है।
राज्य के किसानों पर 75 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज है। पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है जहाँ पाकिस्तान हमेशा राज्य की बड़ी किसान आबादी की कमज़ोरियों की खोज में रहता है, जोकि नशों और आतंकवाद को बढ़ावा देकर इसको और कमज़ोर किया जा सके। इसलिए राज्य को कर्ज माफी फंड दिया जाए।
15000 रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष का मुआवज़ा दिया जाए
इसी तरह सरहद के साथ लगती कँटीली तार के पार 150 फुट चौड़ी 425 किलोमीटर लम्बी बेट में 14,000 एकड़ वाले किसानों को उन पर लगाई गईं प्रतिकूल शर्तों के अनुसार मुआवज़ा दिया जाए। वह सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक काम कर सकते हैं और तीन फुट से ऊँची फसलों की पैदावार नहीं कर सकते, इसलिए उनको 15000 रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष का मुआवज़ा दिया जाए।
कृषि मंत्री ने आगे कहा है कि पंजाब ने पिछले चार दशकों में अन्न के भंडार में देश को गेहूँ और चावल का अनाज दिए हैं। इस प्रक्रिया में 1000 सालों से बनी मिट्टी से पौष्टिक तत्व ख़त्म हो गए हैं और भूजल ख़तरनाक स्तर तक गिर चुका है। राज्य के पास 15 से 20 सालों में निकालने के लिए पानी नहीं होगा।
किसान धान-गेहूँ के चक्र से बाहर निकले
भारत सरकार को एक नैतिक कर्तव्य के रूप में राज्य के किसानों को अगले दशक में फसलीय विभिन्नता, पानी का संरक्षण और उच्च मूल्य वाली फसलों, जैसे कपास, दालें, फल, सब्जियाँ, गन्ना, तेल के बीजों में विभिन्नता लाने में मदद करने के लिए एक उपयुक्त कॉप्र्स (फंड) स्थापित करना चाहिए। इसमें दो भाग होने चाहिएं। एक किसान को धान-गेहूँ के चक्र से बाहर निकालने के लिए और दूसरा पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी में अनुसंधान के मानक को ऊँचा उठाने के लिए जरूरी है।
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केंद्रीय कृषि को इस बात से भी अवगत करवाया गया है कि धान की कटाई और गेहूँ की बिजाई के बीच केवल 15 दिनों का समय होता है। धान की पराली को जलाना किसान की आदत की अपेक्षा मजबूरी अधिक है, जिस कारण किसान को 2500 रुपए प्रति एकड़ दिए जाने की ज़रूरत है, जिससे वह पराली को मशीनी तौर पर कृषि यंत्रों के साथ मिला सकें। धान के अधीन 75 लाख एकड़ के लिए भारत सरकार को 1125 करोड़ रुपए सालाना राज्य को दिए जाएँ।
300 करोड़ रुपए बदलाव लाने में मददगार साबित होंगे
धालीवाल ने लिखा है कि किसानों को पानी बचाने, खाद डालने, ड्रोन का प्रयोग, फलों की चुगाई और कीड़ों पर नजऱ रखने के लिए मार्गदर्शन देने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निवेश समय की ज़रूरत है। इसी तरह शुद्ध खेती, ग्रीन हाऊस में, वर्टीकल एग्रीकल्चर और हाईड्रोपोनिक्स अब इजराइल और अन्य विकसित देशों में व्यापक तौर पर अपनाए जाते हैं, जोकि छोटे किसानों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। अगले दशक में हर साल कम-से-कम 300 करोड़ रुपए बदलाव लाने में मददगार साबित होंगे।
फलों और सब्जियों की कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को गोदामों और ट्रकों/वाहनों की एक कोल्ड चेन की ज़रूरत होती है। 1000 करोड़ रुपए की सहायता राज्य की फसलीय विभिन्नता में लम्बा सफऱ तय करने के लिए अपेक्षित होगा। अंत में कृषि मंत्री ने पाकिस्तान, ईरान और मध्य पूर्व के मुल्कों के साथ कृषि और बाग़बानी उत्पादों का व्यापार खोलने की माँग की है, जिससे राज्य की आर्थिकता में बहुत मदद मिलेगी।
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