डेली संवाद, नई दिल्ली। EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया संविधान के इस संशोधन के तहत सरकार ने कॉलेज में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित की है।
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मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच- न्यायाधीशों की संविधान पीठ बीते कुछ दिनों से इस कानूनी सवाल पर सुनवाई कर रही थी। यह कोटा जनवरी 2019 में 103वें संविधान संशोधन के तहत ईडब्लूएस में लागू किया गया था। इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। पांच जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी।
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याचिका में कहा गया था कि एससी, एसटी और ओबीसी में भी गरीब लोग हैं तो फिर यह आरक्षण केवल सामान्य वर्ग के लोगों को क्यों दिया जाता है। इससे 50 फीसदी के आरक्षण नियम का उल्लंघन होता है। पहले से ही ओबीसी को 27 फीसदी, एससी को 15 और एसटी के लिए 7.5 फीसदी कोटा तय किया गया है। ऐसे में 10 फीसदी का ईडब्लूएस कोटा 50 फीसदी के नियम को तोड़ता है।
ईडब्ल्यूएस कोटा ग़रीब परिवारों के लिए ज़रूरी – केके वेणुगोपाल, तुषार मेहता
इस सुनवाई में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सरकार का पक्ष रख रहे थे। वहीं शिक्षाविद मोहन गोपाल और दूसरे अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता ईडब्ल्यूएस कोटे के विरुद्ध बहस कर रहे थे। शिक्षाविद् मोहन गोपाल ने इस मामले में 13 सितंबर को बेंच के समक्ष सबसे पहले दलीलें पेश की थीं। अपनी दलील में ईडब्ल्यूएस कोटा संशोधन का विरोध करते हुए गोपाल ने इसे पिछले दरवाजे से आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने का प्रयास बताया। वहीं संशोधन का बचाव करते हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये ईडब्ल्यूएस कोटा सामान्य वर्ग के ग़रीब परिवारों के लिए ज़रूरी है।
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