Repo Rate: जानें, क्या हैं रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर और एसएलआर …?

Daily Samvad
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डेली संवाद, चंडीगढ़। Repo Rate: आज भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank Of India) के मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy) की बैठक खत्म हो गई है। इसके बाद आरबीआई गवर्नर (RBI Governor) शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) ने ब्याज दरों को लेकर अहम फैसला किया है।

आज सुबह RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट को 25 बेसिस प्वाइंट बढ़ाने का ऐलान किया। लगातार छठी बढ़ोतरी के बाद अब भारत में रेपो रेट 6.5 फीसदी पर पहुंच गया है। आम आदमी को भी इस बढ़ोतरी से शर्तिया फर्क पड़ता है, क्योंकि इसके बाद बैंक आदि अपने द्वारा दिए जाने वाले लोन पर ब्याज़ की दरों को बढ़ा दिया करते हैं।

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लेकिन आम आदमी को इन ख़बरों में इस्तेमाल किए गए शब्दों के बारे में जानने की न सिर्फ इच्छा बनी रहती है, बल्कि इस शब्दावली के अर्थ जाने बिना ख़बर को समझना भी मुश्किल हो जाता है… तो आइए जानते हैं – रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर – के अर्थ..

क्या है रेपो रेट

आसान शब्दों में कहे तो रेपो रेट का मतलब होता है कि रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैंकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर। बैंक इस चार्ज से अपने ग्राहकों को लोन प्रदान करता है। रेपो रेट कम होने का अर्थ है की कस्टमर को कम ब्याज दर पर होम लोन और व्हीकल लोन जैसे लोन मिलते हैं।

क्या है रिवर्स रेपो रेट

जैसा इसके नाम से ही साफ है की यह रेपो रेट से विपरीत होता है। बता दें कि, यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में कैश लिक्विडिटी को नियंत्रित करने में काम आती है। मार्केट में जब भी बहुत ज्यादा कैश दिखाई देती है तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है। इससे बैंक ज्यादा से ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा देते हैं।

क्या है सीआरआर

देश में लागू बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपनी कुल कैश का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

क्या है एसएलआर

जिस दर पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखती है, उसे एसएलआर कहते हैं। कैश लिक्विडिटी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। वहीं, कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है। आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना कैश लिक्विडिटी को कम करना चाहता है तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास लोन देने के लिए कम रकम बचती है।

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