डेली संवाद, जालंधर। Jalandhar News: जालंधर नगर निगम की वार्डबंदी के खिलाफ दायर की याचिका पर कल यानि 28 सितंबर को फिर सुनवाई होगी। पंजाब एंड चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने नगर निगम द्वारा पेश किए डिमिलेटेशन प्रक्रिया की रिपोर्ट पर वीरवार को सुनवाई होगी। जिससे नगर निगम के चुनाव देरी से होंगे।
पंजाब के जालंधर में नगर निगम की नई वार्डबंदी के विवाद में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में 28 सितंबर को सुनवाई होगी। हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान नोटिस जारी कर नगर निगम के अधिकारियों को नई वार्ड बंदी से जुड़ा सारा रिकॉर्ड और उन पर दर्ज हुई सारी आपत्तियों का डेटा लेकर आने के आदेश दिए थे।
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आदेश के अनुसार अधिकारी नई वार्डबंदी का सारा रिकार्ड और उस पर दर्ज 119 आपत्तियों का रिकार्ड लेकर हाई कोर्ट में नहीं पहुंचे। अधिकारी कोर्ट में रिकार्ड पेश नहीं कर पाए। इसके बाद निगम की तरफ से पेश हुए वकील ने केस में अगली तारीख की मांग की। इस पर कोर्ट ने अब 28 सितंबर को सारा रिकार्ड लेकर पेश होने के आदेश दिए।
आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी ने जालंधर निगम की प्रस्तावित वार्डबंदी को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। यह याचिका हाईकोर्ट के वकील एडवोकेट मेहताब सिंह खैहरा, हरिंदर पाल सिंह ईशर तथा एडवोकेट परमिंदर सिंह विग द्वारा डाली गई है जिसमें पंजाब सरकार और इसके विभिन्न विभागों को प्रतिवादी बनाया गया है।
यह याचिका जिला कांग्रेस के प्रधान तथा पूर्व विधायक राजेंद्र बेरी, पूर्व कांग्रेसी पार्षद जगदीश दकोहा तथा पूर्व विधायक प्यारा राम धन्नोवाली के पौत्र अमन द्वारा डाली गई है। याचिका में तर्क दिया गया है कि पंजाब सरकार ने जब डीलिमिटेशन बोर्ड का गठन किया था, उसके सदस्यों को बदला नहीं जा सकता परंतु बोर्ड के सदस्य जगदीश दकोहा तथा अन्य पार्षदों को इस आधार पर हटा दिया गया क्योंकि जालंधर निगम के पार्षद हाऊस की अवधि खत्म होने के बाद वह पार्षद नहीं रह गए थे।
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याचिका में कहा गया है कि 5 एसोसिएट सदस्यों को न तो डिलीमिटेशन बोर्ड की बैठक में बुलाया गया और न ही उन्हें बोर्ड से हटाने हेतु कोई नोटिफिकेशन ही जारी किया गया। सरकार ने अपनी ओर से दो सदस्य बोर्ड में मनोनीत कर दिए जबकि सरकार केवल एक ही सदस्य बोर्ड में अपनी ओर से भेज सकती है। याचिका में कहा गया है कि जब डीलिमिटेशन बोर्ड ही अवैध है तो उस द्वारा तैयार की गई वार्डबंदी अपने आप ही गैरकानूनी हो जाती है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि प्रस्तावित वार्डबंदी में गूगल मैप को आधार बनाया गया है जो आम आदमी की समझ से परे है। इसकी बजाए ड्राफ्ट्समैन से वार्डों की सीमाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए था परंतु राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते वार्डबंदी का प्रस्तावित ड्राफ्ट तैयार किया गया। पता चला है कि कांग्रेस ने याचिका में स्टे आर्डर की मांग की है।