Income Tax Rule: टैक्स रिफंड ब्याज की जानकारी ना देने पर क्या लगती है पेनल्टी? जाने

Daily Samvad
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डेली संवाद, नई दिल्ली। Income Tax Rule: करदाता द्वारा सही इनकम की जानकारी देना जरूरी है। अगर वह कम इनकम या फिर गलत जानकारी देते हैं तो आयकर विभाग उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हैं। हाल में ही टैक्स ट्रिब्यूनल की मुंबई पीठ में टैक्स रिफंड को लेकर एक मामला पहुंच चुका है।

हाल ही में मुंबई में एक सीनियर सिटीजन और इनक टैक्स डिपार्टमेंट के बीच एक मामला टैक्स ट्रिब्यूनल की मुंबई पीठ में पहुंचा। इस मामले में सीनियर सिटीजन ने कहा कि टैक्स रिफंड पर मिल रहे इन्टरेस्ट के बारे में जानकारी नहीं देने पर लगने वाला जुर्माना वैध नहीं है।

इस मामले में आईटीएटी पीठ में अकाउंटेंट सदस्य अमरजीत सिंह और न्यायिक सदस्य में शामिल संदीप सिंह करहेल ने अपने आदेश में कहा कि जब तक टैक्स रिफंड नहीं हो जाता तब तक ब्याज पर टैक्स लगेगा या नहीं इसको लेकर फैसला नहीं किया जा सकता है।

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ऐसे में आयकर रिटर्न में इनकम की रिपोर्टिंग का मामला नहीं माना जा सकता है। आपको बता दें कि आयकर अधिनियम की 270ए के तहत अगर कोई करदाता इनकम की गलत जानकारी देता है या इनकम कम बताता है तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता है। आइए, जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है?

क्या है पूरा मामला

टैक्सपेयर के सिंह ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किया। इसमें उन्होंने अपनी इनकम 1.9 करोड़ रुपये बताई। वहीं जब जांच हुई तो पता चला कि उनकी आय लगभग 2 करोड़ रुपये है। इसमें 9.7 लाख रुपये का अंतर टैक्स रिफंड पर मिल रहे इंटरेस्ट का था। इसकी जानकारी आईटीआर फाइल करते समय नहीं दी गई थी।

आईटी अधिनियम की धारा 244ए के तहत इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को हप महीने टैक्स रिफंड पर 0.5 फीसदी का ब्याज देना होगा। अगर टैक्स रिफंड के अलावा किसी और सोर्स से ब्याज आता है तो उस पर टैक्स लागू होता है।

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के सिंह के मामले में आयकर अधिकारी ने धारा 270ए के तहत एक नोटिस जारी किया है। इस नोटिस के जारी होने से पहले ही उन्होंने आईटी रिफंड पर मिल रहे ब्याज की जानकारी दे दी। ऐसे में इसे इनकम की झूठी जानकारी का मामला नहीं माना जाएगा।

इस मामले में करदाता का प्रतिनिधित्व करने वाले डेलॉइट इंडिया के पार्टनर केतन वेद ने टीओआई को बताया कि टैक्स रिफंड में जो ब्याज मिलता है वह या तो करदाता के बैंक अकाउंट में जमा होता है या फिर पिछले कर मांगो में समायोजित कर दिया जाता है। ऐसे में करदाता द्वारा गलक इनकम की जानकारी जैसा कोई मामला नहीं बनता है।

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