हैदराबाद। PM Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के कंधे पर सिर रखकर अचानक एक सख्श रोने लगा। इस हरकत को देखते हुए पीएम की सुरक्षा में लगे जवान जैसे ही नजदीक पहुंचे, मोदी ने उन्हें रोक दिया। पीएम मोदी ने कंधे पर रोने वाले सख्श को सांत्वाना दी।
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मामला तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 (Telangana Assembly Elections 2023) के दौरान एक चुनावी रैली का है। पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) आज हैदराबाद पहुंचे। प्रधानमंत्री मोदी ने सिकंदराबाद परेड ग्राउंड में एससी उपजातियों की विश्वरूप महासभा (Vishwarupa Sabha) में हिस्सा लिया।
पीएम मोदी को करीब देखकर मंच पर मडिगा आरक्षण संघर्ष समिति (एमआरपीएस) के संस्थापक अध्यक्ष मंदा कृष्णा मडिगा (Manda Krishna Madiga) के आंसू छलक पड़े। इस पर प्रधानमंत्री ने उनका कंधा थपथपाया और सांत्वना दी। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुआत तेलुगु में बोलकर की।
मंदा कृष्णा मडिगा.. मेरे छोटे भाई जैसे
पीएम मोदी ने सम्मक्का और सरम्मा को याद किया। इसे दलित वर्गों की सबसे बड़ी महासभा कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा में कहा कि मंदा कृष्णा मडिगा.. मेरे छोटे भाई जैसे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे बड़े प्रेम से इस बैठक में आमंत्रित किया गया। पीएम मोदी ने तेलंगाना मडिगा समुदाय को बधाई दी। उन्होंने इतना जज्बा दिखाने के लिए मडिगा समुदाय को विशेष रूप से धन्यवाद दिया।
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यह पहला मौका नहीं है जब पीएम मोदी ने मंदा कृष्णा मडिगा की तारीफ की हो। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की तेलंगाना के वारंगल यात्रा के अवसर पर भी दोनों के बीच मुलाकात हुई थी। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने मंदा कृष्णा मडिगा को गर्मजोशी से गले लगाया था। साथ ही उन्होंने खुद इस संबंध में ट्विटर के जरिए तस्वीरें शेयर की थीं।
इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रैली में कहा कि आजादी के बाद आपने देश में कई सरकारें देखी हैं, हमारी सरकार ऐसी है जिसकी सर्वोच्च प्राथमिकता गरीब कल्याण, वंचितों को वरीयता देना है, भाजपा जिस मंत्र पर चलती है वह सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास है।
जानिए कौन हैं मंदा कृष्णा मडिगा
मंदा कृष्णा मडिगा को हाशिए पर गई मडिगा समुदाय के अधिकारों के प्रति उनकी लड़ाई के लिए जाना जाता है। 7 जुलाई, 1965 को येलैया के नाम से पैदा मडिगा एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और कार्यकर्ता भी हैं।
1980 के दशक में प्रारंभिक जाति-विरोधी सक्रियता से लेकर 1994 में मडिगा आरक्षण पोराटा समिति की स्थापना और मडिगा उपनाम जोड़ने तक की उनकी यात्रा को जातिगत भेदभाव, बच्चों के स्वास्थ्य और विकलांगता अधिकारों जैसे मुद्दों पर वकालत के प्रयासों के जरिए पहचाना गया है।