डेली संवाद, जालंधर। Municipal Corporation Election: जालंधर नगर निगम (Municipal Corporation Jalandhar) चुनाव को लेकर बड़ी खबर सामने आ रही है। हाईकोर्ट में दाखिल कांग्रेस की याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय जज ने 9 फरवरी को अगली तारीख मुकर्रर की है। जिससे अब निगम चुनाव में देरी होगी। चर्चा यह भी है कि सरकार खुद अभी निगम चुनाव नहीं करवाना चाहती है।
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कांग्रेस के जिला प्रधान राजिंदर बेरी और अन्य ने जालंधर की वार्डबंदी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इस याचिका के बाद सरकार ने नई वार्डबंदी जारी करते हुए सरकार ने 15 नवंबर से पहले चुनाव करवाने का ऐलान किया था। लेकिन सरकार चुनाव नहीं करवा सकी है।
अगली ताऱीख 9 फरवरी को
वहीं, इस नई वार्डबंदी के खिलाफ कांग्रेस के जिला प्रधान राजिंदर बेरी व अन्य ने एक अलग से याचिका लगा दी। इसी याचिका पर आज हाईकोर्ट में सुनवाई थी। सुनवाई के दौरान अगली ताऱीख 9 फरवरी को दी गई है, जिससे अब वार्डबंदी पर 9 फरवरी को सुनवाई होगी।
कांग्रेस के जिला प्रधान राजिंदर बेरी ने बताया कि हाईकोर्ट में सरकार ने फगवाड़ा नगर निगम के चुनाव का हवाला दिया गया है। फगवाड़ा नगर निगम का केस सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। इसके बाद माननीय जज ने 9 फरवरी की अगली तारीख दी है। बेरी के मुताबिक सरकार खुद इलैक्शन नहीं करवाना चाहती है।
लोकसभा चुनाव के बाद निगम चुनाव?
आपको बता दें कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इनके रिजल्ट 3 दिसंबर को आएंगे। इसके बाद लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी। सत्ता के गलियारे में चर्चा यह है कि पंजाब में AAP सरकार लोकसभा चुनाव के बाद नगर निगम का चुनाव करवाएगी।
निगम कमिश्नर की पोस्टिंग नहीं
एक सप्ताह हो गए हैं, लेकिन सरकार नगर निगम जालंधर में कमिश्नर के पद पर किसी अफसर की पोस्टिंग नहीं की है। जिससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर चुनाव करवाने होते तो, कमिश्नर जैसे महत्वपूर्ण पद पर किसी तेज तर्रार अफसर को लगाकर शहर में विकास काम शुरू हो जाता।
नगर निगम में कमिश्नर के पद पर कोई अफसर नहीं है, जिससे कई सारे काम ठप हो गए हैं। यही नहीं, कमिश्नर के तबादले के बाद सरकार ने किसी अफसर को कमिश्नर का प्रभार भी नहीं सौंपा, जिससे कमिश्नर स्तर के सभी कामकाज फाइलें में दब गई हैं।
पार्षद चुनाव लड़ने वालों की ‘हवा’ टाइट
एक तरफ जहां हाईकोर्ट में तारीख पर तारीख आ रही है, वहीं सरकार भी निगम चुनाव को लेकर सीरियस नजर नहीं आ रही है। जिससे सबसे ज्यादा परेशानी पार्षद चुनाव लड़ने वाले नेताओं को है। करीब एक साल से पानी की तरह पैसा बहाकर जनता को रिझाने की कोशिश में जुटे पार्षदी के दावेदार नेता की अब हवा ‘टाइट’ हो गई है।
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नगर निगम चुनाव अगर लोकसभा चुनाव के बाद हुआ तो पार्षदी चुनाव लड़ने वाले ज्यादातर दावेदार मैदान छोड़ कर भाग सकते हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से पार्षदी चुनावी लड़ने वालों की अग्नि परीक्षा ही नहीं, बल्कि तन, मन और धन की परीक्षा होगी।