डेली संवाद, जालंधर। Jalandhar News : Sushil Rinku भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में करीब 18 प्रतिशत वोट हासिल किए हैं, जिसे वह बड़ी सफलता के रूप में देख रही है और इस अवसर को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। पार्टी की यह पुरानी आदत रही है कि वह कम को भी ज्यादा आंकती है, लेकिन इसका परिणाम यह हो रहा है कि पंजाब में भाजपा को वह सफलता नहीं मिल रही है जिसकी वह हर चुनाव में उम्मीद करती है।
2022 में हुए विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। अब 2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा अपने दावों से पीछे रह गई। इसके पीछे एक बड़ा कारण यह था कि पार्टी ने पंजाब में दल बदलुओं के सहारे सफलता हासिल करने की कोशिश की, लेकिन इसमें भी पार्टी को कामयाबी नहीं मिल सकी। पार्टी की रणनीति में यह कमी लगातार नजर आ रही है और इसका असर चुनावी नतीजों पर पड़ रहा है।
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Sushil Rinku का बेवजह एक्सपैरिमेंट
जालंधर में भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी की टिकट हासिल कर चुके सुशील रिंकू(Sushil Rinku) को अपने खेमे में शामिल कर लिया, लेकिन यह प्रयास भी सफल नहीं हो पाया। सुशील रिंकू के साथ किया गया पार्टी का यह प्रयोग फ्लॉप साबित हुआ। जालंधर में कांग्रेस के उम्मीदवार चरणजीत सिंह चन्नी ने 1,75,993 मतों से जीत हासिल की, जबकि सुशील रिंकू दूसरे स्थान पर रहे।
हालांकि, भाजपा के लिए खुशी की एक वजह यह थी कि उसके उम्मीदवार को आम आदमी पार्टी से अधिक वोट मिले। 2023 के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा तीसरे नंबर पर रही थी, जबकि इस बार पार्टी के प्रदर्शन में सुधार हुआ और वह दूसरे स्थान पर आई। फिर भी, पार्टी की यह रणनीति अपेक्षित सफलता नहीं दिला पाई।
Sushil Rinku क्यों नहीं नेताओं से घुल-मिल पाए
बड़ा सवाल यह है कि जालंधर में सुशील रिंकू भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़कर जीत क्यों नहीं पाए। इसके पीछे एक प्रमुख कारण यह था कि रिंकू भाजपा और आर.एस.एस. के नेताओं के साथ उस तरह से घुल-मिल नहीं सके, जैसा कि आवश्यक था। रिंकू पहले कांग्रेस में थे, फिर आम आदमी पार्टी में गए, और अंततः भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस और आप का कल्चर भाजपा से बिल्कुल अलग है।
भाजपा में फैसले संगठन और पार्टी के स्तर पर लिए जाते हैं, और इन फैसलों में संघ की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संघ के नेताओं को एक विशेष सम्मान दिया जाता है, लेकिन यह सब सुशील रिंकू के लिए नई और अपरिचित चीजें थीं। इन सांस्कृतिक और संगठनात्मक अंतर के कारण रिंकू भाजपा में पूरी तरह से समायोजित नहीं हो पाए, जिससे उनकी चुनावी संभावनाएं प्रभावित हुईं।
वोट बैंक का डैमेज
भाजपा से संबंधित कई नेता बता रहे हैं कि सुशील रिंकू ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई उच्च संघ अधिकारियों से मिलने का मौका भी नहीं दिया। भाजपा के नेता भी रिंकू के साथ सहजता महसूस नहीं कर रहे थे और उन्हें भाजपा की कार्य करने की शैली में फिट नहीं महसूस हो रही थी। इसी कारण से भाजपा के कार्यकर्ता भी रिंकू की जीत में सफल नहीं हो पाए।
एक और बड़ा कारण था कि रिंकू ने बहुत कम समय में तीन पार्टियों का साथ चुना। 2023 में जालंधर के उपचुनाव से पहले वह कांग्रेस से आप में शामिल हुए, फिर आम आदमी पार्टी में जाएं और अंततः लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा में शामिल हो गए। इस स्थिति के कारण न तो भाजपा के लोग संतुष्ट थे और न ही जनता खुश थी।