Temporary Foreign Workers Canada News: संयुक्त राष्ट्र के खास रिपोर्टर तोमोया ओबोकाटा की ताज़ा रिपोर्ट ने कनाडा में अस्थायी विदेशी श्रमिकों (Temporary Foreign Workers) के साथ हो रहे दुर्व्यवहार और शोषण पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस रिपोर्ट में पाया गया कि कनाडा का अस्थायी विदेशी कर्मचारी कार्यक्रम (Temporary Foreign Worker Program) न केवल श्रमिकों को उनके अधिकारों से बेसहारा करता है, बल्कि आधुनिक बंधन के रूप को बढ़ावा देता है।
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क्या है यह Temporary Foreign Workers Canada कार्यक्रम?
कनाडा का अस्थायी विदेशी (Temporary Foreign Workers Canada) कर्मचारी कार्यक्रम उन कंपनियों को विदेशी श्रमिकों को काम पर रखने की अनुमति देता है जो स्थानीय कर्मचारियों की कमी का सामना कर रही हैं। इस कार्यक्रम के तहत, कृषि, निर्माण, फास्ट फूड, और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में भी श्रमिकों की भर्ती की जाती है। पिछले कुछ वर्षों में, इस कार्यक्रम के तहत भर्ती किए गए श्रमिकों की संख्या में बहुत बढ़ोतरी हुई है। 2018 में जहां 108,988 श्रमिकों को अनुमति दी गई थी, वहीं 2023 तक यह संख्या बढ़कर 239,646 हो गई है।
श्रमिकों का शोषण और दुर्व्यवहार
ओबोकाटा की रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्थायी विदेशी श्रमिकों को कनाडा में खतरनाक श्रमिक हालात, वेतन चोरी, यौन शोषण और शारीरिक व मानसिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। कई श्रमिकों को काम पर आने के लिए पैसे उधार लेने पड़ते हैं, जिससे वे लोन के जाल में फंस जाते हैं। ये श्रमिक अपने वेतन से इस लोन को चुकाने की कोशिश करते हैं और इसी स्थिति में बंधुआ मजदूरी की तरह फंस जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, इस कार्यक्रम के तहत श्रमिकों का शोषण हो रहा है क्योंकि मालिक अपने फायदे के लिए श्रमिकों को उनके अधिकारों से दूर कर रहे हैं। श्रमिकों को बेहतर वेतन या नौकरी के लिए दूसरी जगह काम खोजने की इजाजत नहीं है, क्योंकि उनका वर्क परमिट केवल एक खास मालिक से जुड़ा होता है। इसके अलावा, उन्हें कनाडा की सामाजिक सहायता का लाभ नहीं मिलता, जबकि वे इसके लिए भुगतान करते हैं।
ओबोकाटा ने कहा है कि इस शोषण को खत्म करने का एकमात्र तरीका श्रमिकों को स्थायी निवास का दर्जा देना है। हालांकि, कनाडा सरकार ने अभी तक इस सुझाव को नहीं माना है और केवल “सख्त और कठोर निगरानी” का वादा किया है।
वकालत समूहों की चिंता
प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले समूहों ने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि सरकार की नीतियां नियोक्ताओं और श्रमिकों के बीच शक्ति का असंतुलन बनाए रखती हैं, जिससे श्रमिकों का शोषण होता है। जस्टिस फॉर माइग्रेंट वर्कर्स के क्रिस रामसरूप का कहना है कि यह सिर्फ शोषण का मामला नहीं है, बल्कि श्रमिकों के साथ जाति भेदभाव का भी मुद्दा है।