डेली संवाद, नई दिल्ली। Mysteries of Mount Kailash: कोविड-19 महामारी के पांच साल बाद 30 जून 2025 से कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar Yatra 2025) यात्रा फिर से शुरू हो रही है। यह यात्रा हिंदू, बौद्ध, जैन, सिक्ख धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद पवित्र मानी जाती है। हालांकि, कैलाश पर्वत सिर्फ धार्मिक मान्यताओं की वजह से खास नहीं है।
क्यों कोई नहीं चढ़ पाया है कैलाश के शिखर तक?
इससे जुड़े कई ऐसे अनसुलझे रहस्य (Kailash Parvat Mystery) हैं, जिनके बारे में जानकर हर कोई हैरान रह जाता है। हैरानी की बात यह भी है कि कैलाश का शिखर माउंट एवरेस्ट से काफी नीचा है, लेकिन फिर भी आज तक कोई भी इसकी चोटी पर नहीं चढ़ पाया है। इस वजह से इसके आसपास की अद्भुत घटनाएं (Mount Kailash Mysteries) वैज्ञानिकों के लिए पहेली बनी हुई हैं।
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माउंट एवरेस्ट (8,848 मीटर) की तुलना में कैलाश पर्वत (6,638 मीटर) काफी नीचा है, फिर भी आज तक कोई इसकी चोटी पर नहीं पहुंच पाया है। 1926 में ब्रिटिश और 2001 में जापानी टीम ने कोशिश की, लेकिन अचानक बीमारी, खराब मौसम और अजीब घटनाओं के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा।
हालांकि, इन मौसमी, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और भौगोलिक चुनौतियों के अलावा, लोगों का मानना है कि इन सभी बाहरी घटनाओं से बढ़कर वहां एक अदृश्य शक्ति है, जो कैलाश के एक बिंदू के बाद किसी को भी आगे जाने की अनुमति नहीं देती। हालांकि, इसकी धार्मिक मान्यताओं को देखते हुए चीन सरकार ने कैलाश की चढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन इस पर्वत से जुड़े रहस्य आज तक सुलझ नहीं पाए हैं।
कैलाश का पिरामिड जैसा आकार
कैलाश पर्वत (Kailash Parvat) का आकार एक पिरामिड जैसा है, जिसकी चारों दिशाओं में सिमेट्रिक फेसेज हैं। इस बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह नेचुरल इरोजन और ग्लेशियर की वजह से बना है, लेकिन इसके जैसी परफेक्ट और सिमेट्रिकल ज्योमेट्री प्रकृति में और कहीं शायद ही देखने को मिलती है।
हालांकि, इसके पीछे कई मान्यताएं भी हैं। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि कैलाश मिस्र के पिरामिडों और स्टोनहेंज जैसी संरचनाओं से जुड़ा हुआ है और प्राचीन एनर्जी ग्रिड का हिस्सा हो सकता है। वहीं, तिब्बती बौद्ध धर्म में इसे “अक्ष मुंडी” यानी ब्रह्मांड का केंद्र कहा जाता है।
मानसरोवर और राक्षस ताल
कैलाश के पास दो झीलें हैं- मानसरोवर, जो मीठे पानी की झील है। धार्मिक मान्यताएं हैं कि मानसरोवर का जल बेहद पवित्र होता है। इसके ठीक बगल में राक्षस ताल, जो खारे पानी की झील है। इसका पानी न पीने लायक है और न यहां जीवन पनपता।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ने यहां तपस्या की थी, जिसके कारण यह झील अपवित्र हो गई। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि ये दोनों झीलें कभी जुड़ी हुई थीं, लेकिन टेक्टोनिक हलचलों के कारण अलग हो गईं। फिर भी, इन दोनों के पानी में इतना अंतर क्यों है, इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है। कुछ लोग इसे अच्छा और बुराई के बीच संतुलन का प्रतीक भी मानते हैं।
कैलाश का रहस्यमयी ‘दर्पण’
कैलाश के दक्षिणी हिस्से में एक बहुत बड़ी चिकनी दीवार है, जो धूप में शीशे की तरह चमकती है। हालांकि, हिमालय की शृंखला में इतनी चिकनी दीवार और कहीं नहीं है। ऐसा माना जाता है कि यह नेचुरल ग्लेशियल पॉलिशिंग या चट्टानों की लेयरिंग के कारण हो रही है, लेकिन इसका सही कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है।
क्या कैलाश पर समय तेजी से बीतता है?
कई यात्रियों ने कैलाश के आसपास समय की गति बदलने जैसा अनुभव किया है। कुछ का कहना है कि यहां कुछ घंटों में ही उनके नाखून और बाल तेजी से बढ़ गए, जबकि कुछ को बहुत जल्दी बूढ़ा होने का एहसास हुआ।
1999 में रूसी वैज्ञानिक डॉ. अर्न्स्ट मुलदाशेव ने एक एक्सपेडिशन के दौरान पाया कि कैलाश के अंदर से आवाजें और पत्थर गिरने की आवाजें आती हैं। उन्होंने साइबेरियाई पर्वतारोहियों के बारे में भी बताया, जो यहां ज्यादा देर रुकने के बाद अचानक बूढ़े हो गए थे।