डेली संवाद, नई दिल्ली। Earth Rotation Speed: पृथ्वी, हमारा गृह ग्रह, सूर्य से तीसरा ग्रह है तथा एकमात्र ऐसा खगोलीय पिंड है जिस पर जीवन मौजूद है। हमारी धरती इस जुलाई और अगस्त में कुछ तेज़ रफ्तार से घूमने वाली है, जिससे दिन थोड़े छोटे हो जाएंगे। एक नई रिपोर्ट के अनुसार 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त को दिन सामान्य से कुछ मिलीसेकंड कम होंगे। मिसाल के तौर पर, 5 अगस्त का दिन करीब 1.51 मिलीसेकंड छोटा होगा।
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खास बात यह है कि धरती हर साल अपनी धुरी पर 365 से ज़्यादा बार चक्कर लगाती है। इसी से साल के दिन तय होते हैं, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था। कैल्कुलेशन से पता चलता है कि अतीत में धरती (Earth) को सूरज का एक चक्कर पूरा करने में 490 से लेकर 372 दिन तक लगते थे।
लेकिन क्यों तेज घूमेगी धरती?
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रफ्तार में इजाफे के पीछे कई वजहें हो सकती हैं। धरती के गर्भ में होने वाली हलचल इसका एक कारण हो सकती है। इसके अलावा, ग्लेशियरों के पिघलने से द्रव्यमान में हो रहे बदलाव भी भूमिका निभा सकता है। अल नीनो और ला नीना जैसी घटनाएं भी धरती की चाल को प्रभावित कर सकती हैं।
एनडीटीवी के मुताबिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैंडर्ड्स एंड टेक्नोलॉजी के फिजिसिस्ट जूडा लेविन ने 2021 में डिस्कवर मैगजीन को बताया, “लीप सेकंड की जरूरत न पड़ना एक अनपेक्षित बात थी।” उन्होंने कहा, “सबको यही लगता था कि धरती की रफ्तार धीमी होती रहेगी और लीप सेकंड की जरूरत पड़ती रहेगी। यह नतीजा वाकई हैरान करने वाला है।” धरती की इस तेज रफ्तार से वैश्विक समय के कैल्कुलेशन में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है। हो सकता है कि 2029 में पहली बार एक लीप सेकंड को कम करना पड़े।
इस बदलाव में क्या चांद भी निभा रहा किरदार?
टाइमएंडडेट.कॉम की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2025 में जिन तीन तारीखों को दिन सबसे छोटे होंगे, उन दिनों चांद धरती के भूमध्य रेखा से अपनी अधिकतम दूरी पर होगा। यह इत्तेफाक भी इस अनोखे बदलाव को और रहस्यमयी बना रहा है।
कारण
हालांकि सटीक कारण पर अभी भी शोध किया जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि 2020 से पृथ्वी का घूर्णन धीमा होने के बाद तेज़ हो रहा है। बर्फ की चादरों के पिघलने और पृथ्वी के आंतरिक कोर में बदलाव जैसे कारकों को संभावित योगदानकर्ता के रूप में खोजा जा रहा है।
प्रभाव
हालांकि घूर्णन में परिवर्तन मापने योग्य है, लेकिन हमारे दैनिक जीवन पर इसका कोई उल्लेखनीय प्रभाव पड़ने की उम्मीद नहीं है, हालांकि भविष्य में इसके लिए समय-निर्धारण प्रणालियों में समायोजन की आवश्यकता हो सकती है।