डेली संवाद, नई दिल्ली। Shubhanshu Shukla: अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर 14 दिन गुजारने के बाद Axiom-4 मिशन के क्रू को अब कुछ और दिन धरती से दूर रहना पड़ेगा। यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) ने साफ किया है कि मिशन कमांडर पैगी व्हिटसन, मिशन पायलट ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला (Shubhshu Shukla) और मिशन स्पेशलिस्ट स्लावोश उज्नांस्की-विस्निएव्स्की और टिबोर कपु की धरती पर वापसी अब 14 जुलाई से पहले नहीं होगी।
मौसम और तकनीकी चुनौतियों की वजह से टाली जा रही वापसी
यह क्रू 27 जून से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर वैज्ञानिक प्रयोग कर रहा है और तय योजना के मुताबिक 14 दिन बाद यानी 10 जुलाई को वापसी होनी थी। लेकिन मौसम की खराबी और ISS की तकनीकी दिक्कतों ने इस इंतजार को थोड़ा और लंबा कर दिया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अभी तक वापसी की तारीख पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया।
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Axiom-4 का चालक दल SpaceX के ड्रैगन कैप्सूल ‘ग्रेस’ में सवार होकर धरती पर लौटेगा। यह कैप्सूल फ्लोरिडा के तट के पास अटलांटिक महासागर या मैक्सिको की खाड़ी में सॉफ्ट स्प्लैशडाउन करेगा। लेकिन अगर इस इलाके में तेज हवाएं, बारिश या तूफान जैसी मौसमी दिक्कतें हों, तो स्प्लैशडाउन को टालना पड़ता है। ESA और नासा ने बताया कि मौसम की खराबी के चलते वापसी को 14 जुलाई तक टाला जा सकता है।
इसके अलावा, ISS के रूसी ज़व्ज़ेदा मॉड्यूल में हाल ही में हवा के रिसाव (प्रेशर लीक) की समस्या सामने आई थी। नासा और रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने इसकी मरम्मत की, लेकिन मरम्मत के बाद भी हवा के रिसाव का एक नया संकेत मिला। इसकी जांच के लिए और वक्त चाहिए, जिसके चलते Axiom-4 की वापसी में देरी हो रही है। ISS एक बंद वातावरण है, इसलिए किसी भी नए क्रू को जोड़ने या मौजूदा क्रू को वापस लाने से पहले स्टेशन की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करनी जरूरी है।
रिएंट्री का प्रोसेस क्यों होता है अहम?
ड्रैगन कैप्सूल की धरती पर वापसी यानी रिएंट्री एक जटिल प्रक्रिया है। सबसे पहले कैप्सूल को ISS से अनडॉक करना होता है। इसके बाद यह अंतरिक्ष से धरती के वायुमंडल में प्रवेश करता है, जहां यह हजारों डिग्री तापमान का सामना करता है। कैप्सूल का हीट शील्ड इसे जलने से बचाता है।
फिर पैराशूट की मदद से यह समुद्र में सॉफ्ट लैंडिंग करता है। इस पूरी प्रक्रिया में मौसम का बहुत बड़ा रोल है। अगर समुद्र में तेज लहरें या तूफान हो तो लैंडिंग जोखिम भरी हो सकती है। इसके लिए नासा को सटीक लॉन्च विंडो का इंतजार भी करना पड़ता है।
लॉन्च विंडो का मतलब है वह सटीक समय, जब ISS और ड्रैगन कैप्सूल की कक्षा एक-दूसरे के साथ सही तालमेल में रहेगी। अगर मौसम या तकनीकी कारणों से यह समय चूक जाए, तो अगले लॉन्च विंडो का इंतजार करना पड़ता है। यह विंडो कुछ घंटों या कुछ दिनों बाद ही मिल सकती है, जिसके चलते वापसी में देरी हो सकती है।