Lord Jagannath : भगवान जगन्नाथ 15 दिन तक क्यों रहते हैं एकांतवास में और उससे पहले क्यों होते है बीमार? जानें पूरी सच्चाई

Muskan Dogra
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डेली संवाद, ओडिशा | Jagannath : पुरी धाम, ओडिशा में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। हर साल यहां आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को रथयात्रा का आयोजन होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। यह यात्रा बहुत ही भव्य होती है और इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

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Lord Jagannath के रथयात्रा की तैयारी

रथयात्रा का आयोजन केवल एक दिन का होता है, लेकिन इसकी तैयारियां पूरे साल चलती हैं। मकर संक्रांति से ही मंदिर में रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके बाद हर तिथि के अनुसार अलग अलग अनुष्ठान किए जाते हैं। इनमें से एक जरूरी अनुष्ठान ‘अनासर’ है, जिसमें भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं और उन्हें 15 दिनों के लिए एकांतवास में रखा जाता है।

ज्येष्ठ पूर्णिमा और स्नान यात्रा

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ (Jagannath), बलभद्र और सुभद्रा को 108 घड़े जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान समारोह को ‘स्नान पूर्णिमा’ या ‘स्नान यात्रा’ कहा जाता है। यह शाही स्नान समारोह भगवान को गर्मी से राहत दिलाने के लिए किया जाता है। स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें 15 दिनों के लिए एकांतवास में रखा जाता है। इस अवधि को ‘अनासर’ कहा जाता है।

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अनासर के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन नहीं होते हैं। इन 15 दिनों में मंदिर के पुजारी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दौरान देवताओं की रंगीन पटचित्रों की पूजा की जाती है, जिनमें भगवान जगन्नाथ को विष्णु, बलभद्र को शिव और सुभद्रा को आदिशक्ति के रूप में दर्शाया जाता है। इस पूजा विधि को ‘अनासर विधि’ कहा जाता है।

अनासर की कथा

भगवान जगन्नाथ (Jagannath)के बीमार होने की परंपरा के पीछे एक करुण कथा है। बहुत पहले की बात है, पुरी क्षेत्र में माधवदास नामक एक भक्त रहते थे। वह रोज भगवान की पूजा करते थे और सादा जीवन जीते थे। एक बार माधवदास बीमार पड़ गए और किसी ने उनकी सहायता नहीं की। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की और अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं की। भगवान जगन्नाथ अपने भक्त की पीड़ा देखकर स्वयं उनकी सेवा करने आए। उन्होंने माधवदास की बीमारी का भार अपने ऊपर ले लिया और तभी से यह परंपरा पुरी में चली आ रही है।

अनासर की 15 दिनों की अवधि के बाद भगवान जगन्नाथ (Jagannath)स्वस्थ हो जाते हैं और नैनासार उत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनकी मूर्तियों को फिर से सजाया जाता है। यह उत्सव भगवान के स्वस्थ होने का प्रतीक है और इसके बाद ही रथयात्रा की तैयारियां पूरी होती हैं।

Jagannath फुलुरी तेल उपचार

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अनासर पंचमी के दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को ‘फुलुरी’ तेल लगाया जाता है। यह तेल कई सुगंधित फूलों, जड़ों, चंदन पाउडर और जड़ी-बूटियों का मिश्रण होता है। फुलुरी तेल का यह उपचार भगवान को स्नान के कारण हुए बुखार से मुक्ति दिलाने के लिए किया जाता है। इस तेल को बनाने की प्रक्रिया भी बहुत खास होती है और इसे एक साल तक संग्रहीत किया जाता है।

नैनासार उत्सव और फुलुरी तेल उपचार के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा स्वस्थ हो जाते हैं और रथयात्रा के लिए तैयार होते हैं। रथयात्रा के दिन भगवान के विशाल रथों को मंदिर के सिंहद्वार पर लाया जाता है और भक्त बड़ी संख्या में जुटते हैं। सभी भक्त भगवान के रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं। इस दिन पुरी नगरी में एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।

Jagannath रथयात्रा का महत्व

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रथयात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भगवान और उनके भक्तों के बीच के अटूट बंधन को भी दर्शाता है। इस यात्रा के दौरान भगवान अपने भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें अपने दर्शन का लाभ देते हैं। भक्तगण भगवान के रथ को खींचकर स्वयं को धन्य मानते हैं और उनकी भक्ति में लीन हो जाते हैं।

अनासर की परंपरा भगवान जगन्नाथ (Jagannath)की करुणा और भक्तों के प्रति उनकी अपार प्रेम को दर्शाती है। भगवान अपने भक्तों की पीड़ा को समझते हैं और उसे अपने ऊपर ले लेते हैं। यह परंपरा हर साल पुरी में धूमधाम से मनाई जाती है और भक्तगण इसे भगवान की महानता और उनकी करुणा का प्रतीक मानते हैं।

रथयात्रा की महिमा इतनी अद्भुत है कि इसमें शामिल होकर हर भक्त अपने आप को धन्य मानता है। इस यात्रा के माध्यम से भगवान जगन्नाथ (Jagannath)अपने भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह आयोजन भगवान के प्रति भक्तों की अपार भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है।

इस प्रकार, रथयात्रा से पहले भगवान जगन्नाथ (Jagannath)के बीमार होने की परंपरा एक धार्मिक अनुष्ठान और भक्तों के प्रति भगवान की करुणा को दर्शाती है। यह परंपरा हर साल पुरी में धूमधाम से मनाई जाती है और इसमें भगवान की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनकी अपार प्रेम को प्रदर्शित किया जाता है।

रथयात्रा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

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रथयात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से जरूरी है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह उत्सव सभी वर्गों के लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता का प्रतीक बनता है। रथयात्रा के दौरान सड़कों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है, जो समाज के अलग अलग वर्गों से होते हैं। सभी एक ही उद्देश्य से एकत्रित होते हैं – भगवान जगन्नाथ (Jagannath) के दर्शन और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए।

रथयात्रा और भक्ति का संदेश

रथयात्रा का सबसे जरूरी संदेश भक्ति और समर्पण का होता है। भगवान जगन्नाथ (Jagannath )अपने भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें यह संदेश देते हैं कि सच्ची भक्ति और समर्पण ही भगवान को प्राप्त करने का मार्ग है। यह आयोजन हमें यह सिखाता है कि भगवान के प्रति सच्ची भक्ति से हम सभी संकटों का सामना कर सकते हैं और भगवान की कृपा से सभी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।

इस प्रकार, रथयात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू को छूती है – चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो, सांस्कृतिक हो या पर्यावरणीय। यह हमें भक्ति, समर्पण, और सामाजिक एकता का महत्व सिखाती है और हमें एक बेहतर समाज बनाने की प्रेरणा देती है।

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