जालंधर। पति की लंबी आयु की कामना करने के लिए सुहागिन स्त्रियां 17 अक्टूबर को करवाचौथ का व्रत रखेंगी। पति के लिए समर्पण भाव की एक मिसाल जालंधर से भी जुड़ी है। जिस दैत्यराज जलंधर के नाम पर शहर का नाम पड़ा, उसकी पत्नी वृंदा ने अपने पतिव्रता धर्म के पालन के लिए भगवान विष्णु को भी शाप दे कर पत्थर का बना दिया था।
यहां के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है श्री सती वृंदा देवी का यह मंदिर पतिव्रता की एक यादगार के रूप में मौजूद है। इसीलिए करवाचौथ पर दूर-दूर से सुहागिनें यहां आ कर पूजा-अर्चना करना पसंद करती हैं। यहां कथा करने को वे शुभ मानती हैं।
इस जगह पर करवाचौथ की कथा करने को सुहागिनें शुभ मानती हैं। ऐसा हो भी क्यों न… सती वृंदा देवी ने वास्तव में पतिव्रता होने का धर्म निभाते हुए अपने पति दैत्यराज जलंधर के प्राणों की रक्षा के लिए दिन-रात पूजा में बैठ कर अनुष्ठान किया था। कथा के मुताबिक अगर भगवान विष्णु सती वृंदा देवी का संकल्प छल के साथ न तोड़ते तो उनके पति दैत्यराज जलंधर का वध करना संभव नहीं था। इसका जिक्र आज भी पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में मौजूद है।
यह है पौराणिक कथा
राक्षस कुल में जन्मी वृंदा देवी भगवान विष्णु की परम भक्त थी। उनका विवाह दानव राज जलंधर से हुआ था। जलंधर सागर पुत्र था। पतिव्रता वृंदा अपने पति को पूर्ण रूप से समर्पित थी। एक बार राक्षस व देवताओं के मध्य युद्ध हुआ। जब दैत्य राज जलंधर युद्ध में जाने लगे तो वृंदा देवी ने कहा कि जब तक आप ही युद्ध में रहेंगे मैं आपके प्राणों की रक्षा और जीत के लिए अनुष्ठान करूंगी। यह संकल्प आपके वापस आने तक रहेगा। कहा जाता है कि यही मंदिर वह स्थान है, जहां उन्होंने पूजा व अनुष्ठान किया।
वृंदा देवी के समर्पण और भक्तिभाव के कारण दैत्य जलंधर से देवी-देवता हारने लगे। इस बीच जब देवी देवता भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने कहा कि वृंदा मेरी परम भक्त है और अपने संकल्प की पक्की है। इस कारण मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता। इस पर देवी देवता पुन: प्रार्थना करने लगे तो भगवान विष्णु जलंधर दैत्य का ही रूप धारण कर वृंदा देवी के महल में पहुंच गए। जैसे ही वृंदा देवी ने उन्हें अपना पति समझ कर उनके चरण स्पर्श किए, उसका संकल्प टूट गया।
देवताओं ने दैत्यराज जलंधर को मार दिया
इसके साथ ही देवताओं ने दैत्यराज जलंधर को मार दिया। जब सती वृंदा देवी को सच्चाई का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। विष्णु जी को शिला के रूप में देख उनकी पत्नी लक्ष्मी जी ने वृंदा देवी से उन्हें शाप मुक्त करने की प्रार्थना की। इस पर वृंदा देवी ने विष्णु जी को शापमुक्त तो किया लेकिन स्वयं पति का सिर गोद में लेकर सती हो गई।
जालंधर दैत्य की पत्नी माता वृंदा देवी के नाम से बने इस मंदिर से जुड़ी मान्यता यह है कि यहां पर एक गुफा थी, जो यहां से हरिद्वार तक जाती थी। इसलिए इस मंदिर का नाम सती वृंदा देवी मंदिर गुफा कहा गया है। हालांकि लोगों की आस्था जुड़ी होने के चलते गुफा की खुदाई नहीं की गई क्योंकि इससे मंदिर की इमारत को नुकसान हो सकता था।
मंदिर के अध्यक्ष वरिंदर कौशल के मुताबिक यहां पर लगने वाला तुलसी-आंवला पूजन मेला विश्व विख्यात है। इस मंदिर की चारदीवारी के बाहर एक तलाब हुआ करता था। जिसका एक छोर मां अन्नपूर्णा मंदिर को छूता था। पौराणिक कथाओं में जालंधर में 12 तालाबों का वर्णन है। इन्हीं में से एक तालाब यह था। समय के साथ मंदिर में विकास कार्य करवाए गए, जो निरंतर जारी हैं। (साभार-jagran.com)
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