नई दिल्ली। देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्रियों, सांसदों, खिलाड़ियों, बॉलीवुड कलाकारों और उद्योगपतियों तक हजारों लोगों की चीन जासूसी करवा रहा है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में इस साजिश का खुलासा करते हुए बताया है कि चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी टेक्नॉलजी कंपनी जेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के जरिए यह जासूसी कराई जा रही थी। आखिर चीन ने किस तरह की टेडा का कलेक्शन किया है? हाईब्रिड वारफेयर के क्या मायने हैं? और चिंता की बात क्या है? आइए इन सवालों के जवाब जुटाने की कोशिश करते हैं।
चीन की यह टेक्नॉलजी कंपनी राजनीति, सरकार, कारोबार, प्रौद्योगिकी, मीडिया और सिविल सोसायटी को टारगेट करती है। चीनी इंटेलिजेंस, मिलिट्री और सिक्यॉरिटी एजेंसियों के साथ काम करने का दावा करने वाली कंपनी जेनहुआ सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स और अन्य डिजिटल माध्यमों से डेटा जुटाती है और इन्फॉर्मेशन लाइब्रेरी तैयार करती है, जिनमें ना केवल न्यूज सोर्स, बल्कि फोरम, पेपर, पेटेंट, बिडिंग डॉक्युमेंट्स और यहां तक की रिक्रूटमेंट का कॉटेंट शामिल होता है।
कंपनी एक ‘रिलेशनल डेटाबेस’ तैयार करती है, जो व्यक्तियों, संस्थाओं और सूचनाओं के बीच संबंधों को रिकॉर्ड करती है व्याख्या करती है। दरअसल डेटा नहीं बल्कि इसके रेंज और इस्तेमाल को लेकर चिंता है। जेनहुआ की ओर से टारगेट व्यक्तियों और संस्थाओं के सोशल मीडिया अकाउंट्स से सभी जानकारियां एकत्रित कर ली जाती हैं। दोस्तों और संबंधियों पर भी नजर रखी जाती है। किसने क्या पोस्ट किया, उस पर किसने लाइक किया, क्या कॉमेंट किया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए यह तक जानकारी जुटाई जाती है कि कौन कहां जा रहा है।
क्या है हाईब्रिड वारफेयर?
1999 की शुरुआत में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अप्रतिबंधित युद्ध के रूप में हाइब्रिड वॉरफेयर की रूपरेखा तैयार की, जिसने सैन्य युद्ध को राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से बदल दिया। इस युद्ध में नए हथियार आम लोगों के जीवन से जुड़े हुए थे। वास्तव में देश के भीतर राजनीतिक पार्टियां भी विपक्ष को टारगेट करने के लिए इन टूल्स का इस्तेमाल करती हैं।
हाइब्रिड वॉर वास्तव में छद्म युद्ध है। इस युद्ध में बम, बंदूक का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि इसमें दुश्मन को साइबर और मनोवैज्ञानिक दांवपेंच से हराया जाता है। इसके तहत जनता की सोच को बदला जाता है। अफवाहें और फेक न्यूज के जरिए अपने मंसूबों को पूरा किया जाता है। डेटा चोरी के जरिए इसे और अधिक आसानी से अंजाम दिया जा सकता है।
जासूसी को लेकर क्या है चिंता?
सीमा पर चीन की आक्रामकता बढ़ने के बाद भारत ने 100 से ज्यादा चीनी मोबाइल ऐप्स को भारत में बैन कर दिया है। भारत ने इसके लिए देश की सुरक्षा, संप्रभुता, अखंडता और शांति व्यवस्था का तर्क दिया। हालांकि, इस कदम से जेनहुआ जैसे ऑपरेशन पर असर पड़ने की संभावना कम है। हाल में कई रिपोर्ट आईं जिनमें बताया गया कि चीन सोशल मीडिया के माध्यम से अमेरिका और यूरोप में संवेदनशील सैन्य, खुफिया या आर्थिक जानकारियां जुटा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह डेटा वॉर का जमाना है। हम जब डेटा को टुकड़ों में देखते हैं तो नहीं समझ पाते हैं कि आखिर इससे कोई क्या हासिल कर सकता है? लेकिन इन्हीं छोटी-छोटी जानकारियों को एक साथ जुटाकर और उनका किसी खास मकसद से हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के आतंरिक मुद्दों, राष्ट्रीय नीति, सुरक्षा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सबसे में सेंधमारी के प्रयास किए जा सकते हैं।
किन लोगों की हो रही थी जासूसी?
जिन लोगों की जासूसी की जा रही है उनमें राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके परिवार के सदस्य, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, अमरिंदर सिंह, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक, शिवराज सिंह चौहान, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी, रेलमंत्री पीयूष गोयल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत, सेना के कम से कम 15 पूर्व प्रमुखों, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, सीएजी जीसी मूर्मू, स्टार्टअप टेक उद्यमी जैसे भारत पे के संस्थापक निपुण मेहरा, ऑथब्रिज के अजय तेहरान, देश के बड़े उद्यमी रतन टाटा और गौतम अडाणी जैसे लोगों शामिल हैं।







