डेली संवाद, जालंधर
उत्तर भारत के सिद्ध शक्ति पीठ श्री देवी तालाब मंदिर में आज संगीत की स्वरलहरियां गूंजेगी। विश्व प्रसिद्ध श्री हरि वल्लभ संगीत सम्मेलन को लेकर होने वाले आयोजन में 27 दिसंबर को संगीत में महारत हासिल कर चुके कलाकार प्रस्तुति देंगे। हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन के पंडाल में जब श्रोतागण सुर के वशीकरण के प्रभाव से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं तो भूल जाते हैं कि वह अपने पीछे भौतिकवाद को बहुत दूर छोड़ आए हैं। उन्हें तो सुर लहरी में एक अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है।
कोरोना वायरस महामारी के चलते हर वर्ष 3 दिन होने वाले इस आयोजन को सीमित करके एक दिन का कर दिया गया है। इस बार बच्चों के संगीत मुकाबले तो नहीं करवाए जा रहे, लिहाजा औपचारिक रूप से इस संगीत सम्मेलन को एक दिन में संपन्न करने को लेकर व्यापक स्तर पर तैयारियां की गई हैं।
हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन गत 145 वर्ष से सफलतापूर्वक चल रहा है। शास्त्रीय संगीत से जुड़े प्रत्येक मन में इस सम्मेलन के प्रति अगाध श्रद्धा देखी जाती रही है। भारत एवं पाकिस्तान से बहुत सारे फनकार अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए इस मंच पर आकर अपने लिए गर्व अनुभव कर रहे हैं। संगीत के इस महाकुंभ को कुछ इतिहासकार महान संगीत उत्सव भी मानते हैं।
स्वामी तुलजा गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण
हरिवल्लभ संगीत महासम्मेलन में स्वामी तुलजा गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है। तुलजा गिरि जी स्वयं संगीत के ज्ञाता थे। उनके शिष्य स्वामी हरिवल्लभ देवी तालाब की नानकशाही ईंटों से बनी सीढ़ियों पर बैठ कर ध्रुपद गाया करते थे। कुछ लोगों का मानना है कि कि बाबा हरिवल्लभ के कंठ से निकले सुर सुनने वालों को मदहोश कर देते थे। बाबा हरिवल्लभ का ननिहाल जालंधर में था और उनका जन्म स्थान प्रसिद्ध नगर बिजवाड़ा, जिला होशियारपुर था। स्वामी तुलजा गिरि का परलोक गमन सन 1874 को कहा जाता है। तत्पश्चात हरिवल्लभ जी को उनकी गद्दी प्राप्त हो गई। उन्होंने अपने गुरु स्वामी तुलजा गिरि की संगीत साधना को जारी रखा।