महाबीर जायसवाल
@mahabirJaiswal
पंजाब विधानसभा चुनाव (Punjab Assembly Election) में अब चार महीने का ही वक्त बचा है लेकिन हाल में हुए बड़े परिवर्तन के बावजूद कांग्रेस पार्टी में परेशानियां कम होती नहीं दिख रही हैं। माना जा रहा है चुनाव में टिकट वितरण के दौरान भी नाराजगी पनप सकती है। इसके अलावा नई कैबिनेट में मंत्रालय बंटवारे को लेकर कुछ नाराजगी पहले से दिखने लगी है। खासकर कांग्रेस का गढ़ माना जाता दोआबा में किसका दबदबा होगा, आजकल ये सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है।
पंजाब का दोआबा कांग्रेस का अभेद किला माना जाता है। इस किले को बचाए रखने के लिए कांग्रेस अपने नेताओं और वर्करों को खुश करने की शुरूआत कर दी है। दोआबा में कभी दलित नेता चौधरी जगजीत सिंह का बोलबाला था। वे कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद कांग्रेस सरकार में नंबर दो के नेता माने जाते थे। उनके निधन के बाद अभी तक दोआबा में कोई नेता अपना दबदबा नहीं बना सका है। हालांकि कैप्टन के करीबी रहे विधायक सुशील रिंकू ने दलित राजनीति में कद बढ़ाने का काम किया, लेकिन अब कैप्टन के हटने और चन्नी के सीएम बनने के बाद रिंकू की बजाए मोहिंदर केपी एक बार फिर से सक्रिय हो रहे हैं।
पूर्व सांसद मोहिंदर सिंह केपी करीबी रिश्तेदार
पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और जालंधर के पूर्व सांसद मोहिंदर सिंह केपी करीबी रिश्तेदार हैं। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हाशिये पर चल रहे पूर्व मंत्री केपी फिर से पावर में आ सकते हैं। केपी वर्ष 2009 में जालंधर लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर विजयी रहे थे। केपी को 2014 में कैप्टन के चलते जालंधर शहर छोड़ना पड़ा था। लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काटकर चौधरी संतोख सिंह को दे दिया गया था। उन्हें होशियारपुर भेज दिया गया था। कांग्रेस ने उन्हें होशियारपुर से टिकट दिया था। जहां भाजपा के विजय सांपला के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें वेस्ट हलके से हटाकर आदमपुर भेज दिया गया था।
मोहिंदर सिंह केपी आदमपुर से चुनाव हार गए थे। हालांकि मोहिंदर केपी वेस्ट हलके से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उस वक्त कैप्टन के आगे उनकी नहीं चली। जिससे उनकी जगह सुशील रिंकू को टिकट दे दिया गया। दोनों चुनाव हारने के बाद केपी घरवापसी के लिए परेशान हैं। चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के बाद केपी का कद पार्टी में बड़ा होना तय है। अगर चन्नी करीबी रिश्ते व शांत स्वभाव वाले केपी को आगे लाते हैं तो दोआबा की दलित राजनीति का केपी नया चेहरा हो सकते हैं।
नवजोत सिद्धू के बेहद करीबी हैं परगट
दूसरी तरफ भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और मौजूदा समय में पंजाब कांग्रेस कमेटी के प्रधान नवजोत सिद्धू के बेहद करीबी माने जाते कैबिनेट मंत्री परगट सिंह भी दोआबा में अपना कद बढ़ाने में जुट गए हैं। परगट सिंह एसे विधायक हैं, जो शांत स्वभाव के माने जाते हैं। परगट सिंह इससे पहले शिरोमणि अकाली दल में थे। शिरोमणि अकाली दल छोड़ने के बाद 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटवाने में परगट सिंह की अहम भूमिका मानी जाती है। नवजोत सिद्धू के बाद अगर कोई विधायक कैप्टन का विरोध कर रहा था, तो वे थे परगट सिंह। इसी के चलते नवजोत सिद्धू जब कांग्रेस के प्रधान बने, तो उन्होंने परगट सिंह को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त कर दिया था। अब जब नवजोत सिद्धू की मनचाही सरकार बनी है, तो उसमें परगट सिंह को कैबिनेट मंत्री का पद दिया गया है। जिससे परगट सिंह दोआबा में अपना कद बढ़ाने में जुटे हैं।
उधर, रविवार को नए मंत्रियों के शपथग्रहण से कुछ ही घंटे पहले कुछ विधायकों ने राज्य कांग्रेस के मुखिया नवजोत सिंह सिद्धू को खत लिखा है। विधायकों का कहना है राना गुरजीत सिंह को मंत्री नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि उन पर बालू खनन घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। गुरजीत सिंह को कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार से भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद कैबिनेट से हटा दिया गया था। क्योंकि राणा गुरजीत सिंह किसी समय मोहिंदर सिंह केपी का टिकट कटवाने में सबसे आगे थे। (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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