डेली संवाद, चंडीगढ़। Parshuram Jayanti 2023: भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम (Parshuram) का नाम जब भी आता है तो क्रोध का ज्ञान होता है। परशुराम बहुत बड़े ज्ञाता थे। परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है। भगवान परशुराम भार्गव वंश में जन्मे भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था।
माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है कि भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधी स्वभाव के थे। इनके क्रोध से देवी-देवता भी थर-थर कांपते थे। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार परशुराम ने क्रोध में आकर भगवान गणेश का दांत तोड़ दिया था।
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वहीं पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां को भी मार दिया था। इस दिन भगवान विष्णु के परशुराम अवतार की पूजा करने से शौर्य, कांति एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और शत्रुओं का नाश होता है। महर्षि की पत्नी रेणुका ने परशुराम को जन्म दिया था। ऐसा माना जाता है कि मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में उनका जन्म हुआ। उनके नामकरण के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
भगवान परशुराम के बचपन का नाम राम था। लेकिन एक बार उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें परशु नामक अस्त्र वरदान के रूप में दिया था। तब से उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाने लगा। भगवान परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए, अपनी मां रेणुका का मस्तक काटकर धड़ से अलग कर दिया था। अपने पुत्र के कर्तव्य निष्ठा को देखकर महर्षि जमदग्नि ने वरदान मांगने के लिए कहा।
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तब भगवान परशुराम ने वरदान स्वरूप अपनी माता का जीवन पुनः मांग लिया था। महाभारत काल में कर्ण ने झूठ बोलकर भगवान परशुराम से शिक्षा ग्रहण की थी। कर्ण ने स्वयं को ब्राह्मण बताकर परशुराम भगवान से अस्त्र-शस्त्र की विद्या ग्रहण की। जब उन्हें इस झूठ का पता चला, तब कर्ण को यह श्राप दिया कि वह समय आने पर अपनी सभी विद्या भूल जाएगा और इसी कारण महाभारत के युद्ध में अर्जुन के हाथों कर्ण का वध हुआ था।