डेली संवाद, नई दिल्ली। Spinal Muscular Atrophy: स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) एक अनुवांशिक विकार यानी जेनेटिक डिसऑर्डर है। जोकि मरीज के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) और मांसपेशियों को प्रभावित करता है। यह एक दुर्लभ किस्म की बीमारी है। यह जीवित पैदा होने वाले 10,000 नवजातों में से किसी एक में ही पाया जाता है और भारत में यह संख्या 38 में 1 है।
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आमतौर पर, टाइप 1 SMA को सबसे गंभीर माना जाता है, जोकि जन्म लेने के शुरूआती कुछ एक महीनों में ही सामने आने लगता है। टाइप 1 SMA वाले शिशुओं में मांसपेशियों का कमजोर होना, सांस लेने, निगलने और दिमाग से जुड़ी परेशानियों के रूप मे लक्षण नजर आ सकते हैं। SMA की जल्दी पहचान, समय पर उपचार के लिए महत्वपूर्ण है। जिससे जल्द और पॉजिटिव परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
आइए जानते हैं इसके लक्षण, उपचार, बचाव व जरूरी जांच के बारे में विस्तार से…
डॉ. प्रियांशु माथुर, कंसल्टेंट- पीडियाट्रिक्स रेयर डिसऑर्डर्स, एसमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर ने बताया कि, ‘स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी से जूझ रहे बच्चों में ऐसा भी देखने को मिल सकता है कि शुरुआत में उनमें कोई लक्षण ही न नजर आए। बच्चे के जन्म के शुरुआती महीनों के दौरान रीढ़ की हड्डी में धीरे-धीरे मोटर न्यूरॉन का डैमेज होने लगता है।
बिना जांच के नवजातों में SMA की पहचान ही नहीं हो पाती। नवजातों में SMA से जुड़े लक्षणों या आनुवांशिक म्यूटेशन की जांच के लिए एक नॉर्मल सा ब्लड टेस्ट किया जाता है। इससे जल्द उपचार मिलने और समस्या को सही तरीके से कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है।’
बचाव
SMA से पीड़ितों की जांच ही इससे बचाव का एक प्रमुख उपाय है। ऐसा करने से माता-पिता को इस बात की पहचान करने में आसानी हो जाती है कि SMA का कारण अनुवांशिक म्यूटेशन (genetic mutation) तो नहीं।
गर्भावस्था से पहले इसकी पहचान कर, माता-पिता फैमिली प्लानिंग के बारे में सही डिसीज़न ले सकते हैं और म्यूटेशन होने के जोखिम को कम करने के और भी दूसरे ऑप्शन्स के बारे में एक्सपर्ट्स से जान सकते हैं। ऐसा करने से बच्चों में इस समस्या के होने का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।
जांच के तरीके
प्रेग्नेंसी प्लानिंग से पहले या उस दौरान, बच्चे को स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी का खतरा है या नहीं, इसकी पहचान के लिए प्राथमिक सुरक्षा के तरीके हैं। इसमें गर्भावस्था के दौरान कुछ जरूरी जांच की जाती है। अगर माता-पिता ने गर्भधारण के पूर्व या उस दौरान SMA के लिए जांच नहीं करवाई, तो जल्द पता लगाने के लिए नवजात की जांच करवाना बचाव का दूसरा अहम तरीका है।
जन्म के तुंरत बाद ज्यादा जोखिम वाले शिशुओं की जांच, इस समस्या का पता लगाने का एक सही तरीका है। इससे लक्षण प्रकट होने से पहले ही समस्या का पता चल जाता है।
उपचार
किसी भी प्रकार के शारीरिक लक्षण नजर आने से पहले ही अगर उपचार शुरू कर दिया जाए, तो मरीज में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं, लेकिन इसमें मोटर न्यूरॉन से होने वाली डैमेजिंग को ठीक नहीं किया जा सकता।
SMA के प्रबंधन के लिए, इसके लक्षणों को नियंत्रित करने, बीमारी के बढ़ने की स्पीड को कम करने और SMA से पीड़ित रोगी की सेहत को बेहतर बनाने के लिए तैयार की गई अलग-अलग स्ट्रैटजी को अपनाना जरूरी हो जाता है। इन उपचार से ना केवल जिंदगी बेहतर होती है, बल्कि वो लंबे समय तक सेहतमंद जिंदगी जी सकते हैं।
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इसके अलावा SMA से पीड़ित बच्चे की देखभाल और सहयोग के लिए और भी कई एक्सपर्ट्स का रोल बहुत ही खास होता है। न्यूरोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, ऑर्थोपेडिक, पल्मनोलॉजिस्ट, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, ऑर्थोटिक्स और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट भी इसके नियंत्रण में मदद कर सकते हैं। वहीं, फिजियोथेरेपिस्ट भी कुछ खास तरह की एक्सरसाइज सजेस्ट करते हैं। बच्चा सेहतमंद बना रहे और उसका डेवलपमेंट भी सही रहे इसके लिए डाइटिशियन से भी कंसल्ट करें।