डेली संवाद, नई दिल्ली। Eating At Mid Night: कुछ लोगों में देर रात नींद से उठाकर खाने की आदत होती है। देर से खाना खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता। आयुर्वेद के अनुसार सूर्यास्त के बाद किया गया भोजन शरीर को फायदा कम नुकसान ज्यादा पहुंचाता है।
लेकिन नींद से जगकर खाने की आदत सेहत के लिए ज्यादा खतरनाक है और नॉर्मल भी नहीं है। इसे मेडिकल टर्म में ‘नाइट ईटिंग सिंड्रोम’ (Night Eating Syndrome) कहा जाता है। यह ईटिंग डिसऑर्डर इंसोमेनिया के शिकार लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है। रात में व्यक्ति को लगातार नींद न आने की समस्या को इंसोमेनिया कहा जाता है। आधी रात नींद में जगकर खाने से धीरे-धीरे लाइफस्टाइल से जुड़ी और परेशानियां भी सामने आने लगती हैं।
कौन होते इसके शिकार?
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के अनुसार, नाइट ईटिंग सिंड्रोम 1-2 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करता है, जो पुरुषों और महिलाओं दोनों में देखने को मिलता है। जो लोग मोटापे के शिकार होते हैं और जिन्हें खाने की आदतों से जुड़ी समस्याएं होती हैं उन्हें नाइट ईटिंग सिंड्रोम ज्यादा सताता है। जो व्यक्ति डिप्रेशन या एंग्जायटी का शिकार होता है उनमें इस सिंड्रोम का रिस्क बढ़ जाता है।
जिन लोगों में नशीली दवाओं या शराब की लत या बिंज ईटिंग जैसे खाने के डिसऑर्डर होते हैं उनमें भी रात में उठकर खाना खाने की आदत पनप सकती है। यही नहीं नॉर्मल वजन वाला व्यक्ति भी अगर रात को देर तक जागता है तो इस समस्या की चपेट में आ सकता है।
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हैदराबाद अपोलो अस्पताल के डॉक्टर सुधीर कुमार बताते हैं कि नाइट ईटिंग डिसऑर्डर मोटापा तो बढ़ाता ही है। साथ ही ये डायबिटीज, मेटाबोलिक समस्याएं, हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकती है।
महिलाओं मे नाइट ईटिंग सिंड्रोम के लक्षण ज्यादा
अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में नाइट ईटिंग सिंड्रोम के लक्षण अधिक होने की आशंका होती है। इसकी वजह एंग्जाइटी, डिप्रेशन और रात में नींद के लिए जूझना है।
नाइट ईटिंग सिंड्रोम होने के पीछे कई फैक्टर
हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो नाइट ईटिंग सिंड्रोम के पीछे कई वजहें होती हैं। व्यक्ति की बॉयोलॉजिक क्लॉक शरीर में 24 घंटे चलती है। ये क्लॉक व्यक्ति के सोने और जागने की साइकिल को भी नियंत्रित करती है। यह पूरे दिन दिमाग को सजग रखने के साथ ही भूख का एहसास भी कराती है।
अगर कोई भी व्यक्ति नाइट ईटिंग सिंड्रोम से पीड़ित है, तो उसकी बॉयोलॉजिक क्लॉक ठीक तरह से काम नहीं कर रही होती है। उनका शरीर ऐसे हॉर्मोन रिलीज करने लगता है, जो दिन के बजाय रात में भूख का अहसास कराते हैं और नींद लाने के बजाए व्यक्ति को और सतर्क महसूस कराते हैं जिससे भूख लगने लगती है।
कुछ लोगों में ये समस्या आनुवंशिक भी होती है। कई बार अगर दिन में शरीर को पर्याप्त कैलोरी नहीं मिलती तो शरीर रात के समय कैलोरी की डिमांड करता है और दिमाग भूख लगते का संकेत देने लगता है।
दिन में कम खाने वालों में इस सिंड्रोम का ज्यादा खतरा
द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (JAMA) के एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति शाम 6 बजे तक अपनी डेली कैलोरी इनटेक का लगभग एक तिहाई ही कंज्यूम कर पाता है। इस सिंड्रोम से परेशान लोग शाम 6 बजे तक केवल 700 कैलोरी ले पाते हैं, इसलिए रात में उनका शरीर बची हुई जरूरत को पूरा करता है। एक स्वस्थ पुरुष को दिन में 2200 से 2500 कैलोरी और महिला को 1800 से 2000 कैलोरी की जरूरत होती है।
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जिनमें ये दिक्कत नहीं थी, वे शाम 6 बजे तक अपने दिन भर की जरूरत की लगभग 75% कैलोरी यानी 1500 कौलरी ले लेते थे। नाइट ईटिंग सिंड्रोम उम्र की शुरुआत टीनएज से होती है। किशोर उम्र के बच्चों में ये समस्या बहुत कम देखने को मिलती है।
नाइट ईटिंग सिंड्रोम ही नहीं, ईटिंग डिसऑर्डर के कई रूप
ईटिंग डिसऑर्डर साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम होती है। खाने को लेकर कई तरह के डिसऑर्डर होते हैं, जिसे अलग-अलग नाम से बुलाया जाता है। और हर डिसऑर्डर में पीड़ित व्यक्ति अलग तरीके से बिहेव करता है।
बुलिमिया नर्वोसा- जिसे बोलचाल की भाषा बुलिमिया कहते हैं। इस डिसऑर्डर से परेशान व्यक्ति पहले बहुत सारा खाना खा लेते हैं, फिर मोटापे के डर से जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज करने लगते हैं। या फिर जान बूझकर उल्टी करते हैं ताकि खाया हुआ खाना बाहर आ जाए।
एनोरेक्सिया नर्वोसा- इससे पीड़ित इंसान वजन को लेकर बेहद चिंतित रहते हैं। वे जरूरत से कम खाना खाते हैं और कैलोरी बर्न करने के लिए लगातार एक्सरसाइज करते हैं।
बिंज ईटिंग- इससे ग्रसित व्यक्ति का खाने पर कंट्रोल नहीं होता है। ऐसे इंसान बिना भूख के भी बहुत सारा खाना खा लेता है।
पिका डिसऑर्डर- इसमें पीड़ित व्यक्ति ऐसी चीजें खाता है, जो नॉन फूड आइटम होता है और जिसमें कोई पोषक तत्व नहीं होता।