डेली संवाद, जालंधर। Radha Krishna Stotra: जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण को बुधवार का दिन अति प्रिय है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण संग राधा रानी की पूजा-अर्चना की जाती है। कई साधक विशेष कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु बुधवार के दिन कान्हा जी के निमित्त व्रत भी रखते हैं।
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धार्मिक मत है कि भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत रहने वाले साधक को जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की भौतिक विपत्तियों से मुक्ति मिलती है। उनकी कृपा से साधक को परमधाम प्राप्त होता है। ज्योतिष शास्त्र में बुधवार के दिन विशेष उपाय करने का भी विधान है। इन उपायों को करने से जीवन में सुखों का आगमन होता है।
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अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन विधि-विधान से मुरली मनोहर की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से दांपत्य और प्रेम जीवन में मिठास आती है। साथ ही रिश्ते मधुर और मजबूत होते हैं।
राधा कृष्ण अष्टकम
चथुर मुखाधि संस्थुथं, समास्थ स्थ्वथोनुथं ।
हलौधधि सयुथं, नमामि रधिकधिपं ॥
भकाधि दैथ्य कालकं, सगोपगोपिपलकं ।
मनोहरसि थालकं, नमामि रधिकधिपं ॥
सुरेन्द्र गर्व बन्जनं, विरिञ्चि मोह बन्जनं ।
वृजङ्ग ननु रञ्जनं, नमामि रधिकधिपं ॥
मयूर पिञ्च मण्डनं, गजेन्द्र दण्ड गन्दनं ।
नृशंस कंस दण्डनं, नमामि रधिकधिपं ॥
प्रदथ विप्रदरकं, सुधमधम कारकं ।
सुरद्रुमपःअरकं, नमामि रधिकधिपं ॥
दानन्जय जयपाहं, महा चमूक्षयवाहं ।
इथमहव्यधपहम्, नमामि रधिकधिपं
मुनीन्द्र सप करणं, यदुप्रजप हरिणं ।
धरभरवत्हरणं, नमामि रधिकधिपं ॥
सुवृक्ष मूल सयिनं, मृगारि मोक्षधयिनं ।
श्र्वकीयधमययिनम्, नमामि रधिकधिपं ॥
राधा कृष्ण स्तोत्र
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥