Kolkata News: सदियों पुराने घंटाघरों की सुईयां फिर चलेंगी, एक घड़ी के लिए 3 लाख का खर्च, जानिए पूरी तैयारी

Daily Samvad
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डेली संवाद, कोलकाता | Kolkata News : अगर आप कभी कोलकाता गए हैं, तो आपने वहां के कई पुराने घंटाघर जरूर देखे होंगे। ये घंटाघर ब्रिटिश काल के समय से कोलकाता की शान बने हुए हैं। अब इनकी पुरानी घड़ियों को फिर से ठीक किया जा रहा है। इस काम को अंजाम दे रहा है ‘कोलकाता रेस्टोरर्स’ नाम का एक ग्रुप।

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Kolkata घंटाघरों का ऐतिहासिक महत्व

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भारत के लगभग हर शहर में ब्रिटिश काल के बने हुए घंटाघर आज भी खड़े हैं। कभी ये शहरों की पहचान हुआ करते थे, लेकिन अब ये पुराने और जर्जर हो चुके हैं। ब्रिटिश शासन काल में ये घंटाघर शहरों का केंद्र होते थे। लोग इनमें लगी बड़ी घड़ी में समय देखते थे और इसी के अनुसार काम करते थे। इन ऐतिहासिक घंटाघरों की मरम्मत से पुरानी यादें फिर से ताजा हो रही हैं।

हाल ही में, Kolkata के सेंट एंड्रयूज चर्च के पास एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी को एक परिचित शोर सुनाई दिया। दस सालों से बंद पड़ी घड़ी की आवाज फिर से सुनाई दी। इस घड़ी को 1835 में लंदन के जेम्स मैककेबे रॉयल एक्सचेंज द्वारा बनाया गया था। इसे ठीक करने में करीब 3 लाख रुपये का खर्च आया। यह खर्च चंदे के जरिए जुटाया गया।

‘Kolkata रेस्टोरर्स’ का प्रयास

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‘कोलकाता रेस्टोरर्स’ ग्रुप ने घड़ियों को ठीक करने के लिए एक्सपर्ट स्वपन दत्ता और उनके बेटे सत्यजित को बुलाया। ये दोनों मिलकर बंद पड़ी घड़ियों को ठीक कर रहे हैं। उन्होंने हरिद्वार और पटना जैसी जगहों पर भी पुरानी घड़ियों की मरम्मत की है।

स्वपन दत्ता बताते हैं कि मैकेनिकल घड़ी की मरम्मत प्यार और धैर्य का काम है। अधिकतर घड़ियां ब्रिटिश या जर्मन निर्मित हैं और समय के साथ इनके कुछ पुर्जे खराब हो जाते हैं। हम घिसे हुए पुर्जों को बदलते हैं, टूटे हुए हिस्सों को ठीक करते हैं और फिर से घड़ी को चालू कर देते हैं।

दत्ता परिवार की परंपरा

दत्ता परिवार की घड़ी बनाने की परंपरा पांच पीढ़ियों और लगभग 200 साल पुरानी है। स्वपन दत्ता के परदादा धरानी धर दत्ता ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। कोलकाता में उनके वर्कशॉप में आज भी घड़ी की सुईयों की टिक-टॉक की आवाज गूंजती रहती है।

Kolkata की घड़ियों को ठीक करने की योजना

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‘कोलकाता रेस्टोरर्स’ का उद्देश्य कोलकाता के अतीत की भूली हुई यादों को फिर से जीवंत करना है। इस ग्रुप ने क्राउडफंडिंग के जरिए मरम्मत का खर्च जुटाया। वे अब तक कई चर्चों और सिनेगॉग की घड़ियों को ठीक कर चुके हैं और अब सीलदाह और जीपीओ की घड़ियों को ठीक करने की योजना बना रहे हैं।















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महाबीर जायसवाल, डेली संवाद ऑनलाइन में चीफ एडिटर हैं। वे राजनीति, अपराध, देश-दुनिया की खबरों पर दमदार पकड़ रखते हैं। वह 9 सालों से अधिक समय से Daily Samvad (Digital) में चीफ एडिटर के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने पत्रकारिता करियर की शुरुआत क्राइम की खबरों से की, जबकि उनके पास, अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण में रिपोर्टिंग से लेकर एडिटर तक 25 साल से अधिक पत्रकारिता का अनुभव है। उन्होंने इलाहाबाद की यूनिवर्सिटी से मास कॉम्यूनिकेशन, बीए और एमए की डिग्री हासिल की है।
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