डेली संवाद, जालंधर
पंजाब के मुद्दों पर सीधा स्टैंड लेने वाली संस्था “जागदा पंजाब” (जेपी) ने कृषि पर केंद्र सरकार के अध्यादेश पर चिंता व्यक्त की है। जेपी के कनवीनर राकेश शांतिदूत ने प्रधानमंत्री मोदी से खेती से जुड़े नए अध्यादेशों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है। सरकार ने 5 जून को कृषि उत्पादों को जरूरी वस्तुओं की सूची से बाहर निकाल दिया था। साथ ही कृषि मंडियों के बाहर अपनी फसल बेचने और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को लेकर किसानों के लिए अध्यादेश जारी किए थे।
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शांतिदूत ने चेताया कि इस नए बन रहे कानून से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा। उन्होंने कहा कि सैद्धांतिक रूप से बेशक यह अध्यादेश फसल पर किसान के मालिकाना हक को मजबूत करने वाला लग रहा हो। मगर जमीन पर इसका फायदा देश के अंबानियों, अडानियों और दमानियों को ही होने वाला है। जबकि इसका सीधा नुकसान छोटे किसानों और उपभोक्ता दोनों को होगा।
“सरकार पर आर्थिक बोझ” का नाम दे डाला
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बयान ने इशारा कर दिया है। उन्होंने फसल की सरकारी खरीद पर किसान को मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी- minimum support price) को “सरकार पर आर्थिक बोझ” का नाम दे डाला था। हालांकि बाद में गडकरी इस बयान से बदल गए थे।
नए कानून से यकीनन अब फसल की खरीद की गारंटी खत्म हो जाएगी। पहले सरकार से लागत तो मिल जाती थी। अब उसकी उम्मीद भी नहीं है। छोटे किसानों का शोषण बढ़ेगा। डर है कि वह कहीं वह खेती ही न छोड़ दें। गन्ना किसानों का उदाहरण हमारे सामने है। दशकों से चीनी मिल वालों द्वारा गन्ना किसानों का किस हद तक शोषण होता रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है।
अगर किसान को फसल बेचने की सच्ची आजादी देनी है तो एमएसपी आधारित एक योजना तैयार करनी होगी। सरकार उसके खेतों के पास ही ऐसा ढांचा तैयार करे जिसकी मदद से वह बिना दबाव अपनी मर्जी से फसल बेच सके। अगर वह अपनी फसल अपनी शर्तों पर नहीं बेच पाता है तो सरकार को एमएसपी देकर उसकी फसल खरीदनी चाहिए। इस तरह उसके पास दोनों विकल्प मौजूद रहेंगे।
पंजाब में छोटे किसानों की गिनती ज्यादा है। सरकारी खरीद और खुली मार्केट। दो रास्ते जब किसान के पास रहेंगे तो बड़े व्यापारी फसल को न तो मनमाने ढंग से खरीद पाएंगे और न ही बाद में उपभोक्ता से मनमाना दाम वसूल पाएंगे। इससे खाने पीने की चीजों के दाम कंट्रोल में रहेंगे।
अनाज का जितना मर्जी भंडारण कर सकता है
सरकार ने अनाज को जरूरी वस्तुओं से निकाल दिया है। इससे कोई भी अनाज का जितना मर्जी भंडारण कर सकता है। नया कानून जमाखोरी को बढ़ाएगा। इसलिए अडानी, दमानी और अंबानी सारी फसल अपने मनचाहे दाम पर खरीदेंगे और बाद में महंगा करके बेच देंगे। आटा दाल आम आदमी की पहुंच से दूर हो जाएगा। महंगाई ऐसे ही बढ़ती है।
इस तरह की जमाखोरी और संकट से बचने के लिए पंजाब में खेतों के पास ही हमें फसल भंडारण के लिए गोदाम तैयार करने होंगे। आज किसान की फसल मंडी में पड़ी पड़ी सड़ जाती है। छोटे किसान के पास इस वक्त न तो गोदाम बनाने का समय है और न ही पैसा। पंजाब में आज कृषि आधारित इंडस्ट्री नाम मात्र ही है। इसलिए किसान को बड़े औद्योगिक घरानों के दबाव से मुक्त रखने के लिए पंजाब में ही बड़े स्तर पर कृषि आधारित इंडस्ट्री लगाने की जरुरत है। हर जिला तहसील में इंडस्ट्री खुलेगी तो सूबे में ही पंजाब के किसान की फसल बिक जाएगी।
कौन इस संकट में किसानों का नेतृत्व कर सकता है?
शांतिदूत ने कहा कि “भाजपा की पंजाब ईकाई को राज्य के किसानों के हितों के लिए प्रधानमंत्री से मिलना चाहिए। काम मुश्किल नहीं है। राज्य के सारे किसान संगठनों के नेताओं को साथ जोड़कर। अपनी पार्टी के मंच का इस्तेमाल करते हुए सरकार से बात करें। इस कदम से भाजपा का किसानों में भी आधार मजबूत होगा।
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क्या हैं ये अध्यादेश
‘कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020’ (the Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation Ordinance), 2020) – इसके तहत कोई भी किसान देश की किसी भी मंडी या मार्केट में अपनी मर्जी, अपने दाम पर फसल बेच पाएगा। इससे पहले ऐसा नहीं हो सकता था। सरकार इसे “एक देश और एक मंडी”का नाम दे रही है। सरकार को लगता है कि इससे किसान अपनी फसल का सच्चा मालिक बन जाएगा।
‘मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता अध्यादेश-2020’ (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Ordinance 2020) किसान अब इंडस्ट्री, व्यापारी या रिटेल कंपनियों के साथ पहले से तय कीमतों पर फसल बेचने का समझौता कर पाएगा। यानी किसान और खरीददार के बीच फसल उगने से पहले ही उसके दाम पर एग्रीमेंट हो जाएगा।








