Maa Kushmanda: माँ कुष्मांडा की कथा और जाने उनके स्वरुप के बारे में

Daily Samvad
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डेली संवाद, चंडीगढ़। Maa Kushmanda: मां कुष्मांडा (Maa Kushmanda) की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। मां कुष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

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अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

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इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्मांडा।

माँ कुष्मांडा कथा

शास्त्रोक्त उल्लेख है की जब सृष्टि का अस्तित्व भी नहीं था तब चारो तरफ सिर्फ अंधकार ही था, उस समय माँ कुष्मांडा ने अपने मंद हास्य से सृष्टि की उत्पत्ति की थी। कुष्मांडा माँ के पास इतनी शक्ति है की वो सूरज के घेरे में भी रह सकती है, क्योकि उनके पास ऐसी शक्ति है जो असह्य गरमी को भी सहन करती है। इसलिए माँ कुष्मांडा की पूजा से जीवन में सभी प्रकार की शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है।

माँ कुष्मांडा का स्वरुप

माँ कुष्मांडा अष्टभुजावाली है, माँ सिंह पर सवारी करती है, माँ कुष्मांडा के मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट सुशोभित है, जिसके कारण उनका स्वरुप अत्यंत उज्जवल लगता है, माँ कुष्मांडा के हाथो में क्रमशः कमंडल, माला, धनुष, बाण, कमल, चक्र और गदा धारण किया हुआ है।















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