अरमीत कौर गाड़ा, जालंधर
पिछले एक साल में हमारी दुनिया एकदम बदल गई है। लाखों लोगों की जान चली गई तो कुछ अभी भी कोरोना बीमारी से जूझ रहे हैं। पृथ्वी के हर कोने में कोरोना वायरस का कहर टूटा है। ये खतरनाक वायरस दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया था। जिसके बाद पूरी दुनिया में कोरोना महामारी ने भारी तबाई मचाई।
कोरोना के फैलने की शुरुआत वुहान से ही हुई। दुनिया के ज्यादातर लोग अपने घरों में बंद रहे। अभी भी कोरोना के खतरे की वजह से दुनिया भर में कई जगहों की उड़ानें रद्द कर दी गई हैं और बहुत सी जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग का सख्ती से पालन किया जा रहा है। ये सारे सख्त कदम इसलिए उठाए गए, ताकि कोरोना के तेजी से फैलते संक्रमण पर नियंत्रण पाया जा सके।
वैश्विक महमारी बना कोरोना पूरी दुनिया को तबाही की तरफ लेकर चला गया। एक छोटा सा वायरस जिसको हम देख नही सकते, उसने पूरी दुनिया को अपने सामने घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। इस भयानक महामारी के सकरात्मक पहलू पर अगर हम विचार करें तो हमें बहुत कुछ सीख मिलती है।
फिर से पुराने रंग में दिखी प्रकृति
कोरोना वायरस एक ओर जहां पूरी दुनिया के लिए काल बनकर आया है। वहीं ये लॉकडाउन प्रकृति के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ है। लॉकडाउन में जब पूरी दुनिया एकदम ठहरी हुई थी तब वातावरण पूरी तरह से साफ दिखाई दिया। हालांकि ये तमाम कोशिश कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए की गई थी। लेकिन इसका सकारात्मक असर प्रकृति पर देखने को मिला।
लॉकडाउन की वजह से ज्यादातर फ़ैक्ट्रियां बंद थी। वहीं आवाजाही के साधन भी पूरी तरह बंद थे। अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा। लाखों लोग बेरोज़गार हुए हैं, लेकिन एक अच्छी बात ये रही कि कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आई। अकेले अमरीका के न्यूयॉर्क शहर की ही बात करें तो पिछले साल की तुलना में इस साल वहां प्रदूषण 50 प्रतिशत कम हो गया है।
इस बीमारी ने दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, लेकिन प्रदूषित हो रहे वातावरण पर इसने अपनी एक अलगी ही छाप छोड़ी है। कोरोना के चलते जब देश में लाकडाउन था, तो हमारा वातावरण काफी शुद्ध हुआ। हवा शुद्ध हुई। धौलाधर की बर्फ से ढकी पहाड़ियां, पंजाब के दूर दराज के इलाको से भी साफ दिखी। जिंदगी में एक ठहराव आ गया तथा यह समझ आया कि जिंदगी मे पैसे कमाने की दौड़ में हमने रिश्तों और पारिवारिक समय बिताने को कितना पीछे छोड़ दिया है।
परिवार के साथ बैठकर अपनी खुशियां बांटी
इसी बीच हमने पुराना समय फिर से जी लिया और परिवार के साथ बैठकर अपनी खुशियां बांटी। हमने घर में अपने बच्चों के साथ खेल खेला और उन्हें अपना समय दिया। हमारी नदियां इतनी साफ हो गई है कि पानी पीने लायक हो गया। हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की समझ प्राप्त हुई है। घर का खाना खाकर भी हम खुश रहते है।
पैसे कमाने की दौड़ में जिंदगी को जीना भूल गए है। इसलिए हम कई शारीरिक और मानसिक बीमारी से घिरे हुए है। जब कोरोना महामारी ने हमे मास्क पहनने के लिए मजबूर किया तो इसने, अस्थमा और स्वाईन फूल जैसी बीमारियों को कम कर दिया। खांसी जुकाम कम हुआ। सवाल यह है कि क्या हम अपना व्यवहार तभी बदलेगे जब महामारी आएगी?
हम अपनी जीवन शैली में इस तरह से बदलाव क्यों नही करते कि हमारा पर्यावरण और मन शुद्ध बना रहे। हमारा जीवन और पर्यावरण दोंनो सकरात्मक हो जाएंगे। कोरोना महामारी पर हम किसी भी दिन काबू पा लेगे, लेकिन क्या हम अपने व्यवहार और सोच को नियंत्रित कर सकते हैं। (लेखक, कक्षा 12वीं की स्टूडेंट है)