डेली संवाद, नई दिल्ली। Wrestlers Protest: रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह इस समय मुश्किलों में हैं। दिल्ली में एक बार फिर उनके खिलाफ पहलवान धरना दे रहे हैं और उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं।
एक दिन पहले ही दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण पर FIR दर्ज की है। वहीं, विपक्ष ने भी बृजभूषण को लेकर बीजेपी पर हमला बोल दिया है। ऐसे में संगठन भी एक्शन को लेकर संकट में फंसता देखा जा रहा है।
यौन शोषण के आरोप में एफआईआर दर्ज
भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दिल्ली में यौन शोषण के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है. सिंह पर दो एफआईआर हुई हैं. जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवान गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं और विपक्ष ने इस्तीफा को लेकर दबाव डालना शुरू कर दिया है।
इस बीच, शनिवार को बृजभूषण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और खुद पर लगे आरोपों पर सफाई दी. उन्होंने कहा- मैं अपराधी बनकर इस्तीफा नहीं दूंगा. अपने खिलाफ दर्ज हुई FIR पर उन्होंने कहा कि मैं निर्दोष हूं और जांच में सहयोग करूंगा. बृजभूषण यूपी के कैसरगंज से सांसद हैं और उनका बीजेपी से पुराना नाता रहा है।
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फिलहाल, इस पूरे मामले में बीजेपी चुप्पी साधे हुए है. कहा जा रहा है कि इस चुप्पी के पीछे बीजेपी के कई मायने हैं. आने वाले समय में बीजेपी और बृजभूषण दोनों के लिए जरूरत का सौदा नजर आ रहा है. बृजभूषण ना सिर्फ गोंडा बल्कि अयोध्या, श्रावस्ती, बाराबंकी समेत आसपास की लोकसभा सीटों में अपना दबदबा रखते हैं. क्षेत्रीय दबदबे के चलते बृज भूषण राजनीतिक तौर पर काफी मजबूत नजर आते हैं।
साल 1991 में पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए 66 वर्षीय बृजभूषण या उनकी पत्नी लगभग तब से उत्तर प्रदेश से सांसद हैं. 1996 में बृजभूषण का टिकट काट दिया गया था. उन पर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों को कथित रूप से शरण देने का आरोप लगा था।
तब उनकी पत्नी केकती देवी सिंह को गोंडा से भाजपा ने मैदान में उतारा और जीत हासिल की. वहीं 1998 में सिंह को गोंडा से समाजवादी पार्टी के कीर्तिवर्धन सिंह से एक दुर्लभ चुनाव हार का सामना करना पड़ा।
अशोक सिंघल के करीबी
बृजभूषण शरण सिंह, वीएचपी प्रमुख अशोक सिंघल के करीबी रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी संघ से नजदीकियां रही हैं. उन्होंने अयोध्या से पढ़ाई की और उसके बाद छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत की।
उनको राम मंदिर आंदोलन से जुड़ने का मौका मिला. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद मामले में बृजभूषण समेत कई लोगों पर जनभावनाएं भड़काने का आरोप लगा और उन पर मुकदमा दर्ज हुआ, तब तक बृजभूषण बीजेपी के सांसद के तौर पर चुनाव जीत चुके थे।
बृजभूषण लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों के जरिए अपना दबदबा कायम रखते आए हैं. ये शैक्षणिक संस्थान अयोध्या से लेकर श्रावस्ती तक 100 किलोमीटर के दायरे में फैले हैं. उनके रिश्तेदारों ने भी इस तरह के संस्थानों की स्थापना की है।
स्थानीय भाजपा सूत्रों का कहना है कि सिंह की चुनाव मशीनरी लगभग पूरी तरह से पार्टी से स्वतंत्र इस सेट-अप के जरिए चलाई जाती है जिससे लगता है कि सिंह को पार्टी और पार्टी को भी सिंह की उतनी ही जरूरत है।
हार्डकोर हिंदुत्व छवि
अगर 2009 का जिक्र किया जाए तो बृजभूषण ने भाजपा के घटते प्रभाव को भांपते हुए सपा का रुख किया और कैसरगंज से एक भाजपा उम्मीदवार को हराकर जीत हासिल की. वो यूपीए सहयोगी के रूप में सपा के सिंबल पर चुनाव जीते थे।
सिंह ने जुलाई 2008 में भाजपा सांसद के रूप में परमाणु समझौते की बहस के दौरान इस निर्णय की घोषणा की थी. बृजभूषण हमेशा से अपने बयानों और राजनीति को लेकर मुखर रहे हैं।
पिछले दिनों भी बृजभूषण शरण सिंह ने राज ठाकरे के अयोध्या कूच करने के मामले में खुली चेतावनी दी थी और चर्चा में आए थे. बृजभूषण ने राज ठाकरे का खुलकर विरोध किया और अयोध्या से लेकर बहराइच तक इस बात के पोस्टर लगाए गए कि राज ठाकरे को अयोध्या नहीं आने दिया जाएगा. अपने हार्डकोर हिंदुत्व छवि और स्थानीय सहयोग के दम पर बृजभूषण लगातार अपने क्षेत्र में दबदबा कायम रख सके हैं।
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हालांकि मौजूदा समय में बृजभूषण और बीजेपी के संबंधों में तनाव बना हुआ है. माना जाता है कि आलाकमान के नेता बृजभूषण के कुश्ती महासंघ के मामले को लेकर खुश नहीं हैं. वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ भी बृजभूषण की कोई ज्यादा नजदीकी नहीं दिखाई देती।
इस पूरे मामले में पार्टी की तरफ से रुख स्पष्ट नहीं किया गया है. लेकिन लगातार विवादों में घिरे होने के बावजूद संगठन स्तर पर कार्रवाई बचे हुए नजर आते हैं।
वहीं, इस मामले में धरना देने वाले पहलवानों को मिल रहा राजनीतिक समर्थन भी बीजेपी के लिए नुकसान की वजह बन सकता है, यही वजह है कि 6 बार सांसद रहे बृजभूषण सिंह अब कड़े संघर्ष की बात कहने लगे हैं. ऐसे में टाडा समेत कई आरोपों को झेलकर बरी होने वाले बृजभूषण के लिए इस बार पहलवान महिलाओं द्वारा गंभीर आरोपों से बेदाग निकल पाना आसान नहीं है।
फिलहाल, 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए अहम है और बीजेपी विपक्ष के हाथ इस मुद्दे को भुनाने का मौका नहीं देगी, जिसका भारी चुनावी खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़े।