Lateral Entry: लेटरल एंट्री किसने और क्‍यों की थी इसकी सिफारिश? जाने सबकुछ

Purnima Sharma
7 Min Read

डेली संवाद, नई दिल्‍ली। Lateral Entry: लोकतंत्र में विपक्ष की अहम भूमिका है। विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह सरकार की मनमानी नीतियों पर सवाल उठाए और राष्ट्र हित के मुद्दों पर रचनात्मक सहयोग करे। हालांकि, लोकतंत्र (Democracy) में आजकल हर बात का विरोध करना विपक्ष अपना अधिकार सा मानने लगा है। भारत में भी कुछ ऐसी ही तस्वीर दिखती है।

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जिस लेटरल एंट्री यानी सीधी भर्ती के जरिये पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें प्रमुख पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति करती रहीं, आज विपक्ष में होने के नाते कांग्रेस भर्ती के इसी तौर-तरीके पर सवाल खड़ा कर रही है।

Central Government
Central Government

फेहरिस्त लंबी है, लेकिन सैम पित्रोदा, नंदन नीलेकणि, मनमोहन सिंह और मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे नाम इसी व्यवस्था के जरिये पदासीन हुए थे। विपक्षी दलों के विरोध के चलते अब केंद्र सरकार (Central Government) को इस सुधारवादी नीति से पीछे हटना पड़ा है। विपक्ष की विरोध के नाम पर विरोध करने की प्रवृत्ति की पड़ताल आज सबके लिए अहम मुद्दा है।

ऐसे जमीन पर उतरी लेटरल एंट्री व्यवस्था

लेटरल एंट्री का मतलब है सीधी भर्ती। यानी किसी तरह की परीक्षा के बिना उच्च पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति करना। इसका मकसद सरकारी सेवाओं में विशेष ज्ञान और कौशल वाले लोगों को लाना है।

भारत के लिए लेटरल एंट्री एक नया विचार हो सकता है, लेकिन दुनिया के कई देशों में इसके जरिये नियुक्तियां की जाती हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड अपने यहां लेटरल एंट्री व्यवस्था को संस्थागत रूप दे चुके हैं और यहां ये सिस्टम का स्थाई हिस्सा बन गई है।

UPA सरकार ने पेश किया लेटरल एंट्री का विचार

लेटरल एंट्री का विचार सबसे पहले कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग सरकार ने पेश किया था। वीरप्पा मोईली की अध्यक्षता में 2005 में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने इसका पुरजोर समर्थन किया था। एआरसी को भारत के प्रशासनिक तंत्र को ज्यादा प्रभावी, पारदर्शी और आम नागरिकों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश का काम सौंपा गया था।

Lateral Entry Controversy
Lateral Entry Controversy

किसने की थी लेटरल एंट्री की सिफारिश?

दूसरे एआरसी ने अपनी 10वीं रिपोर्ट में सिविल सेवाओं में कार्मिक प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। आयोग की प्रमुख सिफारिशों में से एक विशेष ज्ञान और कौशल की जरूरत वाले उच्च सरकारी पदों के लिए लेटरल एंट्री शुरू करना था। इसके लिए एक रोडमैप भी दिया गया था।

लेटरल एंट्री की जरूरत क्‍यों?

एआरसी का कहना था कि कुछ सरकारी पदों पर विशेषज्ञता की जरूरत है। पांरपरिक सिविल सेवाओं में यह हमेशा उपलब्ध नहीं होता है। एआरसी ने इस कमी को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र, शिक्षा के क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से पेशेवरों की भर्ती करने की सिफारिश की थी।

पेशेवरों का टैलेंट पूल बनाना

एआरसी का प्रस्ताव था कि पेशेवरों का एक टैलेंट पूल बनाया जाए जिनको छोटी अवधि के लिए या अनुबंध के आधार पर सरकार में शामिल किया जा सके। ये पेशेवर अर्थशास्त्र, वित्त, प्रौद्योगिकी और पब्लिक पालिसी के क्षेत्र में नया नजरिया और विशेषज्ञता लेकर आएंगे।

लेटरल एंट्री में कैसे होता है चयन?

एआरसी ने सीधी भर्ती के लिए पारदर्शी और मेरिट आधारित चयन प्रक्रिया पर जोर दिया था। आयोग का सुझाव था कि भर्ती और प्रबंधन के लिए एक समर्पित एजेंसी स्थापित की जाए।

मजबूत प्रदर्शन प्रबंधन तंत्र

एआरसी ने लेटरल एंट्री के जरिये आने वाले पेशेवरों को उनके काम के लिए जवाबदेह बनाने और नियमित तौर पर उनके योगदान का आकलन करने के लिए मजबूत प्रदर्शन प्रबंधन तंत्र की सिफारिश की थी।

सिविल सेवाओं के साथ विलय

एआरसी ने सिविल सेवाओं में सीधी भर्ती से आने वाले पेशेवरों के विलय पर जोर दिया था। आयोग का मानना था कि विलय इस तरह से होना चाहिए कि पेशेवरों की विशेषज्ञता का लाभ भी मिले और सिविल सेवा की अखंडता और उसकी मूल प्रकृति बनी रहे।

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प्रशासनिक सुधार आयोग ने तैयार की थी जमीन

मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पहले प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन 1966 में किया गया था। बाद में के. हनुमंतैया ने मोरारजी देसाई की जगह ली थी। आयोग ने भविष्य में सिविल सेवाओं में विशेषज्ञता की जरूरत पर विमर्श के लिए जमीन तैयार की थी।

आयोग ने लेटरल एंट्री के मौजूदा स्वरूप की बात नहीं की थी, लेकिन उसने यह सुनिश्चित करने के लिए कि नौकरशाही तेजी से बदलते देश की चुनौतियों का सामना कर सके, पेशेवर रवैये, प्रशिक्षण और कार्मिक प्रबंधन सुधारों पर जोर दिया था।

भारत सरकार काफी पहले से उच्च पदों पर प्रतिभाओं को शामिल करती रही है। आम तौर पर ये नियुक्तियां सलाहकार की भूमिका के लिए होती थीं। कभी-कभी अहम प्रशासनिक भूमिका में भी प्रतिभाओं को लाया जाता रहा है।

उदाहरण के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार की नियुक्ति पारंपरिक तौर पर लेटरल एंट्री के जरिये होती है। नियम के अनुसार इस पद के लिए अभ्यर्थी की उम्र 45 वर्ष से कम होनी चाहिए और वह प्रसिद्ध अर्थशास्त्री होना चाहिए। इसके बाद कई अन्य लोगों को सरकार में सचिव स्तर पर भी नियुक्त किया गया है।

Lateral Entry Scheme
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कब लागू हुई लेटरल एंट्री स्कीम?

लेटरल एंट्री स्कीम औपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में 2018 में लागू की गई। इसके तहत पहली बार संयुक्त सचिव और डायरेक्टर के पदों के लिए निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के पेशेवरों से आवेदन आमंत्रित किए गए।

2018 में संयुक्त सचिवों की भर्ती के जरिये एआरसी के विजन को लागू किया गया। एआरसी ने अपनी सिफारिशों में पारंपरिक सिविल सेवाओं में विशिष्ट कौशल का एकीकरण करने की बात पर जोर दिया था।

VISA Hub और Kingdom Consultant भी निकले ठग

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मेरा नाम पूर्णिमा शर्मा है, और मैं भारत के पंजाब में जालंधर की रहने वाली हूँ। मैं 2021 से ब्लॉगिंग कर रहा हूं। मैं अब dailysamvad.com के साथ सहयोग करने का अवसर पाकर उत्साहित हूं। आप sharmapurnima897@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से मुझसे संपर्क कर सकते हैं।
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