नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में प्रदूषण फैलाने के लिए पंजाब के किसानों की पराली नहीं, बल्कि दिल्ली वाले खुद जिम्मेदार हैं। यह खुलासा एक सर्वे के बाद हुआ है। राजधानी में 18 जगहों पर प्रदूषण जानलेवा स्तर पर है। दिवाली और एक सप्ताह बाद तक राजधानी में प्रदूषण चरम पर रहने की आशंका है।
इसे देखते हुए दिल्ली में बृहस्पतिवार (एक नवंबर) से ग्रेडेड रिस्पॉश एक्शन प्लान (GRAP) लागू कर दिया गया है। इसकी वजह से कभी भी दिल्ली-एनसीआर में निजी वाहनों पर प्रतिबंध लागू हो सकता है।
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दिल्ली में इस सीजन में प्रत्येक वर्ष बढ़ते प्रदूषण के लिए आसपास के राज्यों हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में बड़ी मात्रा में इस दौरान किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाने को वजह माना जाता है। केंद्र सरकार ने दिल्ली समेत आसपास के राज्यों में पराली जलाने से रोकने के लिए इस बार 1200 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा भी की थी।
टेरी संस्था द्वारा जारी एक अध्ययन में प्रदूषण से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए गए हैं। इसके अनुसार सर्दियों से ठीक पहले राजधानी में होने वाले 36 फीसद प्रदूषण के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार है। इसके बाद 34 प्रतिशत हिस्सेदारी एनसीआर के शहरों की होती है। शेष 30 फीसद प्रदूषण एनसीआर से सटे इलाकों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार से आता है। टेरी ने ये अध्ययन वर्ष 2016 में किया था, जिसे इसी वर्ष अगस्त माह में जारी किया गया है।
कार से ज्यादा बाइक से प्रदूषण
अध्ययन से पता चला है कि कार के मुकाबले दो पहिया वाहन दोगुने से भी ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। प्रदूषण में कारों का योगदान जहां 3 फीसद है, वहां दो पहिया वाहनों का योगदान 7 प्रतिशत है। पीएम-2.5 के अध्ययन में पता चला है कि सभी तरह के वाहनों से होने वाले प्रदूषण का कुल योगदान 28 प्रतिशत है। इसमें से सबसे ज्यादा 9 फीसद प्रदूषण ट्रकों व ट्रैक्टर जैसे भारी वाहनों की वजह से होता है। तीन पहिया वाहनों का योगदान 5 फीसद और बसों की वजह से 3 फीसद प्रदूषण हो रहा है।
धूल और उद्योग फैला रहे 48 फीसद प्रदूषण
टेरी के अनुसार पीएम 2.5 बढ़ने के पीछे धूल का 18 प्रतिशत और उद्योगों का 30 प्रतिशत योगदान है। धूल के प्रदूषण में 4 फीसद हिस्सेदारी सड़क की धूल, निर्माण कार्य से उड़ने वाली धूल 1 प्रतिशत व अन्य वजहों का योगदान 13 फीसद है। वहीं उद्योगे के 30 फीसद प्रदूषण में से पावर प्लांट का 6 प्रतिशत, ईंट का 8 प्रतिशत, स्टोन क्रशर 2 फीसद, जबकि अन्य छोटे बड़े उद्योगों से 14 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है।
घर से फैल रहा 10 फीसद प्रदूषण
हैरानी की बात है कि हम अपने घरों को प्रदूषण से मुक्त समझते हैं, लेकिन हमारे घर भी प्रदूषण स्तर को बढ़ाने में 10 फीसद भूमिका निभा रहे हैं। इसमें बायोमास (जैव ईंधन) की भूमिका 9 फीसद, केरोसीन इस्तेमाल की हिस्सेदारी 1 फीसद और घरों में खाना पकाने के लिए प्रयोग होने वाली एलपीजी गैस का योगदान 0.1 फीसद है।
पराली से मात्र 4 फीसद होता है प्रदूषण
पराली जलाने से लगभग 15 से 20 दिनों के बीच में सबसे अधिक प्रदूषण होता है। इसी बीच किसान सबसे ज्यादा पराली जलाते हैं। इसलिए दिवाली के आसपास के 15-20 दिन प्रदूषण सबसे अधिक रहता है।
इन 15 से 20 दिनों में दिल्ली में 30 प्रतिशत प्रदूषण का योगदान पराली जलाने की वजह से होता है। हालांकि, सर्दियों के पूरे मौसम का आंकलन करें तो पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण का योगदान मात्र 4 फीसद है।
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