नई दिल्ली। पितृ पक्ष (Pitra Paksha 2020) के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध (Shradh) किया जाता है। माना जाता है कि यदि पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी परेशानियों और तरह-तरह की समस्याओं में पड़ जाता है और खुशहाल जीवन खत्म हो जाता है। साथ ही घर में भी अशांती फैलती है और व्यापार और गृहस्थी में भी हानी होती है।
ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध (Pitru Paksha Shraddha) करना बेहद आवश्यक माना जाता है। श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान (Pind Daan) और तर्पण (Tarpan) कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है।
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कब है पितृ पक्ष
हिंदू पंचांग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं। इनकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है और समापन अमावस्या पर होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक हर साल सितंबर के महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत होती है। आमतौर पर पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है। इस साल पितृ पक्ष 1 सितंबर से शुरू हो कर 17 सितंबर को खत्म होगा।
1 सितंबर- पूर्णिमा का श्राद्ध, 2 सितंबर- प्रतिपदा का श्राद्ध, 3 सितंबर- द्वितीया का श्राद्ध, 5 सितंबर- तृतीया का श्राद्ध, 6 सितंबर- चतुर्थी का श्राद्ध, 7 सितंबर- पंचमी का श्राद्ध, 8 सितंबर- षष्ठी का श्राद्ध, 9 सितंबर- सप्तमी का श्राद्ध, 10 सितंबर- अष्टमी का श्राद्ध, 11सितंबर- नवमी का श्राद्ध, 12 सितंबर- दशमी का श्राद्ध, 13 सितंबर- एकादशी का श्राद्ध, 14 सितंबर- द्वादशी का श्राद्ध, 15 सितंबर- त्रयोदशी का श्राद्ध, 16 सितंबर- चतुर्दशी का श्राद्ध, 17 सितंबर- अमावस का श्राद्ध।
पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना जाता है। हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहत जरूरी माना जाता है। माना जाता है कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। वहीं ये भी कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध
दरअसल, दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथि में ही श्राद्ध किया जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि आपके किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही उनका श्राद्ध किया जाना चाहिए। आमतौर पर इसी तरह से पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियों का चयन किया जाता है।
जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या फिर किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला है तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है। जिन पितरों के मरने की तिथि न मालूम हो, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए। यदि कोई महिला सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई तो उनका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए। सन्यासी का श्राद्ध द्वादशी के दिन किया जाता है।
श्राद्ध के नियम
- पितृ पक्ष के दौरान हर दिन तर्पण किया जाना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है।
- इस दौरान पिंड दान भी करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
- पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि, देवताओं की नित्य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध के दौरान पाना खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है।
- इस दौरान रंगीन फूलों का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
- पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है।
- इस दौरान नए वस्त्र, नया भवन, गहने या कीमती सामान को खरीदने से भी कई लोग परहेज करते हैं।
- श्राद्ध कैसे करें?
- श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें।
- श्राद्ध करने के लिए आप अपने पुरोहित को बुला सकते हैं।
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श्राद के ये भी नियम
- श्राद्ध के दिन अच्छा खाना या फिर पितरों की पसंद का खाना बनाएं।
- खाने में लहसुन और प्याज का इस्तेमाल न करें।
- मान्यता के मुताबिक श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं।
- श्राद्ध के दिन पांच तरह की बलि बताई गई है: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि।
- बता दें, यहां बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्या नहीं है बल्कि श्राद्ध के दिन इन सभी जानवरों को खाना खिलाया जाता है।
- तर्पण और पिंड दान के बाद पुरोहित या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
- ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल है.।
- ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्यवाद दें और जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए माफी मांगे।
- इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठ कर भोजन करें.